मुस्लिम विवाह कानून छीन लेगा मुस्लिम महिलाओं से जीने का हक, यदि हां तो आखिर क्यों?

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वैसे तो समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को समानता और आजादी का अधिकार दिया गया है।मगर वास्तव में यदि अधिकार हर वर्ग के लिए समान है। ऐसा सोचना कितना सही है या कितना गलत हैं आप मेवात के नूंह जिले की घटना को देख अनुमान लगा सकते हैं।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा लिए गए अहम फैसले के बाद एक बार फिर देश में नई बहस का माहौल देखने को मिल रहा है। इस बहस का कारण उस वक्त से शुरू हुआ जब एक शादीशुदा प्रेमी जोड़े ने अपनी जान को खतरा बताते हुए हाईकोर्ट में अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगाई।

मुस्लिम विवाह कानून छीन लेगा मुस्लिम महिलाओं से जीने का हक, यदि हां तो आखिर क्यों?

वहीं हाईकोर्ट ने इस प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए यह कह दिया कि मुस्लिम विवाह कानून के मुताबिक मुस्लिम महिला को अपने पहले पति से तलाक लेना होगा, तब वह अपने प्रेमी के साथ दूसरी शादी कर सकती है।

मुस्लिम विवाह अधिनियम के प्रविधानों की अगर बात करें तो पुरुषों पर यह व्यवस्था समान रूप से लागू नहीं होती है। इसका अर्थ यह है कि मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर सकता है। तीसरी और चौथी शादी भी उसके लिए जायज है।

मुस्लिम विवाह कानून छीन लेगा मुस्लिम महिलाओं से जीने का हक, यदि हां तो आखिर क्यों?

मुस्लिम विवाह कानून 1939 के प्रविधान पुरुषों को अपने पूरे जीवन काल में कितनी बार भी शादी करने की आजादी देते हैं, लेकिन ऐसे पुरुष चार से ज्यादा पत्नी नहीं रख सकते। इसी कानून में प्रविधान है कि जब कोई शादीशुदा महिला दूसरा विवाह करना चाहे या दूसरे पति के साथ रहना चाहे तो उसे पहले वाले पति से तलाक लेना होगा।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम विवाह कानून 1939 के प्रविधानों को आधार बनाते हुए पहले से शादीशुदा प्रेमी युगल को भले ही शादी करने से रोक दिया, लेकिन इस फैसले के बाद यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि क्या मुस्लिम समाज की किसी महिला को अपने हिसाब से जिंदगी जीने का अधिकार नहीं है?

मुस्लिम विवाह कानून छीन लेगा मुस्लिम महिलाओं से जीने का हक, यदि हां तो आखिर क्यों?

क्या उसकी अपनी कोई पसंद नहीं हो सकती? जिस तरह से एक मुस्लिम पुरुष कई शादियां कर सकता है, उसी तर्ज पर क्या एक महिला ऐसा नहीं कर सकती? क्या दूसरी शादी करने के लिए सिर्फ महिला को ही अपने पहले पति से तलाक लेना जरूरी है?..और अगर मुस्लिम पुरुष दूसरी, तीसरी या चौथी शादी करता है तो उसके लिए तलाक अनिवार्य क्यों नहीं है?

ऐसे में सवाल उठता है कि फिर मुस्लिम विवाह अधिनियम के मुस्लिम पर्सनल लॉ में यह कैसा प्रविधान है कि मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी के लिए तलाक लेना अनिवार्य नहीं है, मगर महिला को अपने पहले पति से तलाक लेना होगा।

मुस्लिम विवाह कानून छीन लेगा मुस्लिम महिलाओं से जीने का हक, यदि हां तो आखिर क्यों?

इसी व्यवस्था में बदलाव आज की सबसे बड़ी जरूरत, मुस्लिम समाज में सुधारवादी पुरुषों के लिए चुनौती और केंद्र सरकार के लिए एक और पायदान पर आगे बढ़कर इस असमानता को खत्म करने की बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है। इसमें मुस्लिम समाज के धर्मगुरु सबसे बड़े मददगार साबित हो सकते हैं।