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रेहड़ी पटरी वालों ने सुनाई लॉक डाउन की अपनी दुखभरी कहानी, आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा

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लॉक डाउन के चौथे चरण में रोजगार को वापस से गति देने के लिए जहां एक तरफ औद्योगिक क्षेत्रों को छूट देते हुए खोलने का आदेश सरकार द्वारा दिया गया है वहीं धीरे-धीरे अब रेहड़ी पटरी वाले गरीब लोग भी धीरे-धीरे अपने रोजगार की तरफ वापस लौटने लगे हैं।

रेहड़ी पटरी वालों ने सुनाई लॉक डाउन की अपनी दुखभरी कहानी, आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा

रेहड़ी पटरी द्वारा अपना गुजारा करने वाले अधिकतर लोग फरीदाबाद से पहले ही पलायन कर चुके हैं लेकिन कुछ लोग अभी भी फरीदाबाद में इस आस में रह गए कि धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होगा और वे वापस से अपने रोजगार की ओर वापस लौटेंगे। ऐसे ही कुछ लोगों से जब हमने बात की तो उन्होंने लॉक डाउन के अपने 2 महीनों दुखद समय को व्यक्त की किस प्रकार रोजगार समाप्त होने के बाद आर्थिक तंगी में उन्होंने अपना गुजारा किया।

इसी के चलते सेक्टर 10 की मार्केट में मोची का काम करने वाले 72 वर्षीय शंकरदास से जब हमने बात की और पूछा कि 2 महीने बाद वापस से अपने रोजगार की ओर लौटने पर उन्हें कैसा लग रहा है और लॉक डाउन से पहले ओर अब की उनकी दैनिक कमाई में क्या फर्क पड़ा है।

रेहड़ी पटरी वालों ने सुनाई लॉक डाउन की अपनी दुखभरी कहानी, आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा

शंकर दास ने भावुक होते हुए बताया कि जहां पहले वह अपना दैनिक गुजारा करने के लिए 300 से ₹400 कमा लेते थे वहीं अब 100 रुपए की कमाई भी नहीं हो पा रही है। बीते 2 महीने पहले जब लॉक डाउन की घोषणा हुई तो उस समय उनके पास केवल 5000 रुपए थे जिनके सहारे उन्होंने लॉक डाउन के 2 महीनों का गुजारा किया और रोजाना इस आशा में रहे कि जल्द ही सब कुछ सामान्य होगा।

लेकिन देखते ही देखते 2 महीने गुजर जाने के बाद अब उन्हें अपनी मोची का काम खोलने का अनुमति मिली लेकिन अब भी लोगो को बाहर निकलने की इतनी अनुमति न होने के कारण उनकी कमाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति अब भी दयनीय बनी हुई है।

वहीं जब आइसक्रीम की रेहड़ी लगाने वाले रमेश से हमने बात की जो छूट मिलने के बाद वापस से अपनी इस क्रीम को रेहड़ी लगा पा रहा है तो उसने बताया कि लॉक डाउन के दौरान उसके पास गुजारा करने का कोई चारा नहीं बचा था।

रेहड़ी पटरी वालों ने सुनाई लॉक डाउन की अपनी दुखभरी कहानी, आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा

2 महीने से वह किराया भुगतान नहीं कर पाया है पलायन कर रहे लोगों के साथ हो रहे हादसों के कारण उसमें पलायन करने की हिम्मत नहीं आई और स्थिति के सामान्य होने का इंतजार कर रहा था और जब अब उसे वापस से आइसक्रीम की रेहड़ी लगाने की अनुमति मिली है तो अब मार्केट में लोग न होने के कारण उसकी ₹100 रुपए की भी बिक्री नहीं हो पा रही है।

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इसी प्रकार और भी लोग हमें बाजार में देखने को मिले जिनका कहना था कि जहां एक तरफ लॉक डाउन में उन पर आर्थिक तंगी की मार पड़ी तो वहीं अब रोजगार वापस से शुरू हो जाने के बाद भी उन्हें इतनी आमदनी नहीं हो पा रही है कि वे अपना गुजारा कर पाए।

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