हमारे देश में अभी भी अंधविश्वास पैर पसारे हुए है। कई ऐसे गांव और कस्बे है जहां लोग अंधविश्वास में जी रहे है तो चलिए आज आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है जहां एक भी मंदिर नहीं है और न ही मस्जिद। इसके पीछे भी एक बड़ी कहानी है।
राजस्थान के चूरू जिले में एक अनोखा गांव है जहां एक भी मंदिर नहीं है यहां के लोग धार्मिक कर्मकांड में विश्वास नहीं करते। हैरानी की बात तो ये है कि यहां मरने वालों की अस्थियां बहते पानी में प्रवाहित नहीं किया जाता। जी हां हम बात कर रहे हैं चुरू जिले की तारानगर तहसील के गांव लांबा की ढाणी के बारे में।
जिले की तारानगर तहसील के गांव ‘लांबा की ढाणी’ के लोग मेहनत तथा कर्मवाद के साथ जीवन व्यतीत करते हुए शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार के क्षेत्र में सफलता अर्जित कर अपने गांव को देश भर में अलग पहचान दे रहे हैं। आपको बता दे कि यहां के सभी समुदायों के लोग अंधविश्वास से कोसों दूर रहकर मेहनत और कर्मवाद में विश्वास करते है।
करीब 105 घरों की आबादी वाले गांव में 91 घर जाटों के, 4 घर नायकों और 10 घर मेघवालों के हैं। इसी के साथ अपनी लगन और मेहनत के जरिये यहां के 30 लोग सेना में, 30 लोग पुलिस में, 17 लोग रेलवे में, और लगभग 30 लोग चिकित्सा क्षेत्र में गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।
गांव के पांच युवकों ने खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त किये हैं और दो खेल के कोच हैं। गांव में मंदिर नहीं होने का भी अनूठा कारण है। चिड़ावा के पास लांबा गोठड़ा से लोग इस गांव में आकर बसे थे। तब एक भी मंदिर नहीं था।
गांव में एक भी ब्राह्मण नहीं था। शादी व अन्य कार्यक्रम होने पर गोठड़ा से ही एक पंडित को बुलाया जाता था। वही पंडित ग्रामीणों के सारे धार्मिक काम कर देता। लगातार ये सिलसिला चलता रहा।
इसलिए ग्रामीणों ने कभी भी यहां मंदिर नहीं बनाया। हालांकि गांव में हड़ियाल-रतनपुरा के पास नेशनल हाईवे से जुड़े इस गांव में दो प्राइवेट व एक हाई स्कूल है। एक उपस्वास्थ्य सेंटर, पोस्ट ऑफिस भी है। ऐसा भी नहीं है कि गांव के लोगों को भगवान पर विश्वास नहीं है। सभी भगवान को मानते हैं और कर्म और मेहनत पर पूरा विश्वास करते हैं।