क्या मूर्ति मदिरापान कर सकती…आप कहेंगे नहीं, कतई नहीं। भला मूर्ति कैसे मदिरापान कर सकती है। मूर्ति तो बेजान होती है। बेजान चीजों को भूख-प्यास का अहसास नहीं होता, इसलिए वह कुछ खाती-पीती भी नहीं है।
लेकिन उज्जैन के काल भैरव के मंदिर में ऐसा नहीं होता। वाम मार्गी संप्रदाय के इस मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा भी मदिरापान करते हैं। उज्जैन के काल भैरव मंदिर की ये सच्चाई है।
यहां न केवल भगवान काल भैरव को शराब चढ़ाई जाती है बल्कि उनकी प्रतिमा इसे स्वाकार भी करती है। गजब की बात तो ये है कि कटोरे में शराब जब भगवान काल भैरव की प्रतिमा के मुंह के सामने लाया जाता है तो ये शराब वहां से धीरे- धीरे गायब होने लगता है।
ये शराब कहां जाता है इसे लेकर अभी तक रहस्य बना हुआ है। कहते है इसी करिश्में को देखने के लिए लाखों की तादाद में लोग यहां आते है। इस मंदिर का रहस्य जानने के लिए वैज्ञानिक भी यहां शोध कर चुके है लेकिन कोई भी सबूत न निकल पाए कि आखिर शराब जाती कहां है।
यहां तक कि मंदिर की इमारत को मजबूती देने के लिए मंदिर के चारों ओर करीब 12- 12 फीट गहरी खुदाई की गई है। ताकि ये पता लगाया जा सके कि अगर भैरव की मूर्ति शराब का सेवन करती भी है तो ये शराब जाती कहां है लेकिन इस उलझन के लिए लोगों द्वारा की गई ये कोशिश भी नाकाम रही।
कालभैरव को शराब अर्पित करते समय हमारा भाव यही होना चाहिए कि हम हमारी समस्त बुराइयां भगवान को समर्पित करें और अच्छाई के मार्ग पर चलने का संकल्प करें। मदिरा यानी सुरा भी शक्ति का ही एक रूप है। इस शक्ति का उपभोग नहीं किया जाना चाहिए। इसका उपभोग करने वाला व्यक्ति पथभ्रष्ट हो जाता है।