हरिद्वार और कुंभ यह दोनों नाम ज़हन में आते ही मन पवित्र हो जाता है। यह पवित्रता दिल को मंत्रमुग्ध कर देती है। इस साल होने वाले हरिद्वार में कुंभ मेले को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। यहां कुंभ में एक व्यवस्था चली आ रही है। एक अखाड़ा स्नान करता है, उसके स्नान के बाद घाट की धुलाई की जाती है, तब जाकर दूसरा अखाड़ा हरकी पौड़ी पर पहुंचता है।
स्नान करने में कभी – कभी दिए गए वक़्त से अधिक समय लग जाता है। यह समय कब लड़ाई में बदल जाये किसी को नहीं पता। ऐसा ही कुछ हुआ था 1998 में निरंजनी अखाड़े के शाही स्नान में थोड़ा समय लग गया था।
कुंभ मेले में अकसर दो पक्षों में लड़ाई देखने को मिल जाती है। परंतु, जब से अखाड़ों का निर्माण हुआ है तब से कुंभ में शाही स्नान को लेकर संघर्ष भी शुरू होने लगा है। निरंजनी अखाड़ा स्नान जब कर रहे थे तो, जूना, अग्नि और आवाहन अखाड़े अपने स्नान की राह देख रहे थे। देर होने पर जूना, अग्नि और आवाहन अखाड़े के साधु बिफर गए और इस कारण उस दौर में हरकी पौड़ी पर खूनी संग्राम देखने को मिला।
इस संघर्ष में सैकड़ों साधु संत और पुलिसकर्मी घायल हुए थे। कुछ ऐसा ही खूनी संग्राम फिर दोहरा सकता था, मगर एक पुलिस अधिकारी की सूझ-बूझ से यह टल गया। दरअसल 11 मार्च वाले दिन आयोजित महाशिवरात्रि स्नान पर भी कुछ इसी तरह के खूनी संग्राम होने के आसार बने मगर आईजी कुम्भ मेला सजंय गुंज्याल ने हालात संभाल लिए।
कुंभ मेले में महाशिवरात्रि के दिन से पहला शाही स्नान शुरू हो चुका है। शाही स्नान वाले दिन पहली बारी जूना अखाड़े की थी, जूना अखाड़ा अपनी छावनी से निकलकर समय पर स्नान करके अपनी छावनी की और चल पड़ा था, लेकिन किन्नर अखाड़ा जो कि जूना अखाड़ा के साथ ही स्नान कर रहा था, उनको अपनी छावनी से निकलने में देर हो गई थी।