होली का त्यौहार पूरे देश में खुशी के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार की प्रतीक्षा सभी वर्ग के लोग बेसब्री से करते हैं। रंगों का त्यौहार होली सभी के चेहरों पर मुस्कुराहट लेकर आता है। वहीं, हरियाणा के झज्जर जिले में 2 गांव ऐसे भी हैं जहां ऐसा नहीं होता। गांव झांसवा और मोहनबाड़ी के ग्रामीण आज भी होली के दिन गाय का बछड़ा या फिर किसी महिला को बच्चा होने का इंतजार कर रहे हैं।
होली का पर्व बहुत शुभ माना जाता है। लेकिन ऐसी बहुत सी परम्पराएं होती हैं हर गांव की जो हतप्रभ कर देती है। कुछ ऐसी ही कहानी है इन गांव की। दरअसल, इंतजार के पूरा हो जाने के बाद यह ग्रामीण होलिका पूजन के बाद दहन भी कर पाएंगे।
कुछ हादसे ऐसे होते हैं जो हमेशा दिलों में कैद हो जाते हैं। उनसे बाहर निकल पाना काफी कठिन होता है। कुछ ऐसा ही हादसा हुआ था इन गांवों में। इन दोनों गांवों में होलिका की पूजा तो हो रही हैं, दहन की परंपरा का निर्वाह नहीं हो पा रहा। ग्रामीणों के मुताबिक ऐसा नहीं है कि इन दोनों गांवों में पहले कभी होलिका दहन नहीं हुआ। वर्षों पहले गांवों में हुए एक हादसे के चलते परंपरा को रोकना पड़ा।
सनातन धर्म में होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इसी ख़ुशी में होली का पर्व मनाया जाता है। इस गांव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि कई वर्षों पहले गांव में जब होली पूजन के बाद होलिका दहन किया जा रहा था तो उसी दौरान ही दो सांड लड़ते हुए जलती हुई होली में जा गिरे थे। बाद में उन दोनों सांडों की मौत भी हो गई।
ग्रामीणों के ज़हन में आज भी वो मंज़र कैद हैं। वो हादसा अभी तक वो भुला नहीं सके हैं। उसी दर्द भरी घटना के बाद सभी ने मिलकर होलिका दहन न करने का फैसला किया था। उसके बाद से दोनों ही गांवों में होली का पूजन तो किया जाता है, लेकिन होलिका दहन नहीं किया जाता।
उस दर्दनाक हादसे ने इन गांवों में उदासी आ गई। लोग बताते हैं कि आज पल उनके दिलों में हैं। हालांकि, होलिका दहन करने के लिए इन दोनों ही गांवों के ग्रामीण अपना एक संकल्प भी बताते हैं। सालों से होलिका दहन न किए जाने की परंपरा चली आ रही है। गांव ने संकल्प भी लिया हुआ है कि अगर होली वाले दिन गांव में कोई गाय बछड़े को या फिर गांव की कोई औरत बच्चे को जन्म दे देती है तो गांव में फिर से होलिका दहन शुरू हो जाएगा।