होली एक ऐसा त्यौहार जिसका नाम सुनते ही लोगों का मन हर्षोल्लास से भर जाता है। होली रंगों का त्योहार होने के साथ-साथ आपसी भाईचारे का त्योहार भी माना जाता है। होली पर लोग अनेक प्रकार के पकवान मिठाइयां भी बनाते हैं।
कुछ मनचले लोग इस त्योहार पर शराब का सेवन करते हैं साथ ही इस दिन अधिकतर घरों में मांसाहार भी किया जाता है। लेकिन बिहार के डुमरा अनुमंडल का सोवां एक ऐसा गांव है जहां अनेकों पीढ़ियों से होली के त्यौहार पर व न तो नॉनवेज पकाया जाता है और ना ही खाया जाता है। अन्य सामान्य दिनों में भी इस गांव के लोग मांसाहार का सेवन नहीं करते।
सोवां गांव की परंपरा है कि यहां के किसी भी घर में मुर्गा – मीट नहीं बनाया जाता। लोग केवल पुआ – पकवानों व सादगी पूर्ण तरीके से होली का त्यौहार मनाते हैं। गांव में हर बिरादरी व समुदाय के लोग रहते हैं इसके बावजूद इस परंपरा का सम्मान करते हैं।
सदियों से यहां सात्विक होली मनाने की परंपरा है लेकिन यह किसी धार्मिक मान्यता से नहीं जुड़ी। गांव के लोग बाबा भवर नाथ की पूजा करते हैं और सात्विक होली मनाते हैं।
बुजुर्ग ग्रामीण रामाशीष पाल व पुष्पेंद्र बताते हैं कि उन्होंने जब से होश संभाला है वे इस परंपरा देखते आ रहे हैं व इसका पालन भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव के लिए लोग जो रोजगार के चक्कर में देश-विदेश जा चुके हैं वे भी होली के मौके पर गांव आते हैं
और इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। उनका कहना है कि यही वजह है कि बाबा भवर नाथ की कृपा से गांव में सब खुशहाल रहता है कि गांव के युवा पीढ़ी अपने पूर्व से मिली परंपरा का पालन कर रहे हैं।
अनेक ग्रामीणों का कहना है कि होली सात्विक पर्व है। उन्होंने बताया कि गांव में सब लोग बाबा भोलेनाथ के भक्त हैं। यहां लोग सुबह रंग गुलाल से होली खेलते हैं तथा दोपहर के समय स्नान कर नए वस्त्र धारण कर बाबा भवर नाथ के मंदिर में मत्था टेकते हैं।
उसके बाद मंदिर में विराजमान शिवङ्क्षलग अबीर गुलाल चढ़ाकर पूजार्चना करते हैं। लोगों का कहना है कि वे सदियों से सात्विक होली की इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं व आगे भी निभायेंगे।