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किसानों की गाढ़ी मेहनत पर हक जताने को उतारू हुए तुलाईं-सफाई और ढुलाई वाले

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गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हुए अभी मात्र 8 दिन गुजरे हैं। जानकारी के मुताबिक अब तक जिले की मंडियों में कुल 53 हजार 348 कुंटल गेहूं की सरकारी खरीद हो चुकी है। वहीं बात दें कि मंडियों में गेहूं की आवक तेज होने के कारण किसानों को गेहूं डालने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

उधर, आढ़तियों का कहना है कि इस बार किसानों ने मजदूरों से गेहूं की खेत में कटाई कम कराई है, क्योंकि 9 मार्च को हुई बारिश से फसल लेट गई थी। फसल काटने का मजदूर ज्यादा अनाज मांग रहे हैं। कंबाइन से काटना पड़ रहा है और काम जल्दी निकले यही वजह है कि जोरों पर है।

किसानों की गाढ़ी मेहनत पर हक जताने को उतारू हुए तुलाईं-सफाई और ढुलाई वाले

मगर, आलम यह है कि अब मंडी में अपनी गाढ़ी मेहनत से तैयार फसल लाने वाले किसानों को परेशानी झेलने के साथ साथ धोखाधड़ी भी सहन करना पड़ रहा है। इतना नहीं यहां पर किसान से तुलाई-सफाई और ढुलाई के नाम पर 8 रुपये प्रति कुंतल आढ़ती लेते हैं।

इस तरह से किसान को तुलाई के नाम पर दोहरी मार सहनी पड़ रही है। हम क्या करें, हमे तो सब कुछ देख भी रहे हैं, पर चुपचाप सहने को मजबूर हैं। किसी तरह की आपत्ति करने का भी कोई लाभ दिखता नहीं। प्रशासनिक अधिकारियों को यह सब देखना चाहिए।

किसानों की गाढ़ी मेहनत पर हक जताने को उतारू हुए तुलाईं-सफाई और ढुलाई वाले

दरअसल, अपनी फसल को किसी भी तरह बेचने की चाहत लिए मंडी आया किसान चुपचाप सब कुछ देखने, सहने को मजबूर है। इस बार तुलाई के नाम पर भी किसान की जेब हल्की की जाने लगी है।

गेहूं की दो-दो जगह पर तुलाई की जा रही है और दोनों जगह पर तुलाई के नाम पर रुपया लिया जा रहा है। ये रुपये सिर्फ धर्मकांटे वाले के पास नहीं रहते, बल्कि ऊपर तक इसकी बंदरबांट होती है।

किसानों की गाढ़ी मेहनत पर हक जताने को उतारू हुए तुलाईं-सफाई और ढुलाई वाले

पिछले वर्षों में जब गेहूं मंडी में लाया जाता था, तब सीधे बोरियों में भरवा कर आढ़ती के कांटें पर ही तुलाई हो जाया करती थी। गत वर्ष कोरोना महामारी ने कदम रखे, तो मंडी में भी तुलाई प्रक्रिया में बदलाव आया और किसानों को मंडी से बाहर धर्मकांटे से ट्रैक्टर-ट्राली तुलवा कर लाने को कहा जाने लगा। इस बार भी वही सिस्टम है।

पहले किसान भरी ट्राली लेकर लाइन में लगता है, फिर खाली कराने के बाद खाली ट्राली का वजन होता है। इसके लिए धर्मकांटें पर 70 रुपये की पर्ची कटती है, जो किसान की जेब से जाते हैं। अब न सिर्फ तुलाई के बल्कि मंडी से दूर धर्मकांटा तक दो बार जाने और दो बार आने और लाइन में लग कर बारी के आने तक इंतजार के समय जो महंगा डीजल फुंकता है,

किसानों की गाढ़ी मेहनत पर हक जताने को उतारू हुए तुलाईं-सफाई और ढुलाई वाले

वो अलग। यही नहीं धर्मकांटों पर तुलाई के बाद आढ़ती अनाज मंडी में अपने पल्लेदारों से बोरी/कट्टा भरवाते हैं और इसका वजन मंडी में आढ़ती के कांटा से किया जाता है। मंडी में कांटे पर कट्टा के नाम पर 200 से 500 ग्राम वजन लटकाया हुआ है।

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