सनातन धर्म में जनेऊ का काफी महत्व है। जनेऊ के बारे में आपने खूब पढ़ा होगा। लोगों को पहने हुए भी आपने देखा होगा। हमारे वैदिक धर्म में जनेऊ का बहुत महत्व माना जाता है। हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ भी कहा जाता है ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥
हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से काफी मान्यताएं चली आ रही हैं। यह मान्यताएं समय के साथ – साथ समाप्त हो रही हैं। हालांकि काफी जगहों पर यह सुरक्षित हैं। जनेऊ को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे – उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध, ब्रह्मसूत्र, आदि। जनेऊ संस्कार की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है, जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं।
धर्म यही कहता है कि हमेशा ईश्वर के नज़दीक रहो। पाप के साथी नहीं पुण्य के भागी बनो। उपनयन का अर्थ होता है – ” पास या सन्निकट ले जाना। ” किसके पास? – ब्रह्म और ज्ञान के पास ले जाना। सनातन हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ भी कहते हैं। इस संस्कार में मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी अहम होते हैं।
विश्व का सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म है। हमें हमारे धर्म पर गर्व महसूस करना चाहिए। धर्म को फॉलो करना चाहिए इससे दूर नहीं भागना चाहिए। यह हमारा का कर्तव्य होना चाहिए कि हम जनेऊ पहने और उसके नियमों का पालन करें। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म।
आज – कल के समय में आम इंसान ने इसे पहनना छोड़ दिया है। बाबाओं के कंधों पर ही यह नज़र आता है। हमें इसे पहनते हुए सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।