महामारी काल में परिवहन सेवाओं पर बहुत बड़ा असर देखने के लिए मिल रहा है. बढ़ते संक्रमण के कारण बसों की सवारी संख्या में बड़ी कमी आई है. जिसका असर परिवहन विभाग की वित्तीय स्थिति पर पड़ रहा है. बीते साल में हुए वित्तीय घाटे का सिलसिला इस साल भी जारी है.
आपको बता दे कि परिवहन विभाग के पास कुल 3200 बसे है, जिनमे से 1514 बसे सड़कों पर चलने की एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के संक्रमण के कारण रोडवेज बसों में सवारियां कम हो गई है।स्तिथि में है. इसी के साथ 550 बसे प्राइवेट प्लेयर्स की है जिसको सरकार ने किलोमीटर के किराए के हिसाब से हायर किया हुआ है।
जिसके चलते रोडवेज को एक हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ हैं. आपको बता दे कि परिवहन विभाग की कुल बसों में से 1100 बसे अंतरराज्यीय रूटो पर भी चलती है. जिसमें नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचलप्रदेश , पंजाब, राजस्थान शामिल है. परिवहन विभाग अब इन रूटों पर अपनी बसों की संख्या को बढ़ाना चाहता है, ताकि वे अपने वित्तीय घाटे को पूरा कर सके.
रोडवेज के वित्तीय घाटे को बॉर्डर पर चल रहे आंदोलनों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन की वजह से नई दिल्ली पहुंचने वाली बसों की संख्या में कमी आ गई है. वही दूसरी ओर वोल्वो भी सिंधु बॉर्डर ना जाकर के नई दिल्ली जा रही है. बसों के रूट बदलने के कारण उसके वित्तीय घाटे पर पड़ रहा है।
आपको बता दे की वोल्वो की तीन बसे गुरुग्राम और दो बसे चंडीगढ से चलती है. स्थिति ये है कि सरकारी बसों को ना चला कर प्राइवेट प्लेयर्स की बसों को चलाना परिवहन विभाग की मजबूरी बन चुकी है. जिसका कारण प्राइवेट प्लेयर्स की बसों के साथ हुआ एग्रीमेंट हैं. यदि सरकार इन बसों को नहीं चलती है तो उन पर हुए खर्च सरकार को ही उठाना पड़ेगा.
रोडवेज में हो रहे घाटे के बारे में प्रदेश के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा से पूछे जाने पर , मंत्री ने स्वीकार किया कि महामारी का असर परिवहन सेवाओं पर पड़ा है. संक्रमण के फिर से बढ़ने कर कारण सवायियों में कमी आई है. मगर फिर भी सरकार अंतरराज्यीय रुटों पर बसों की संख्या बढ़ा कर रोडवेज में आए घाटे को कम करने का प्रयास कर रही है.