सोचने पर से ही भरोसा नहीं होता है कि किसानों को अब फसल से ज्यादा कूड़े से लगाव हो गया है। कितना विचित्र लगेगा जब किसान गेहूं,मक्का,सरसो,बाजरा छोड़ कूड़े को पाले। इन दिनों दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के विरोध में बैठे किसानों ने शायद यह सोच लिया है कि खेती छोड़कर कूड़ा प्रेमी बनना है। हर बॉर्डर पर कूड़ा एकत्र हो गया है।
किसान आंदोलन के 150 दिन पूरे होने को हैं लेकिन यह अपनी जिद्द से नहीं हटे हैं। टिकरी बाॅर्डर पर भी किसान डटे हैं। यहां तीन माह से जाखौदा तक 12 किलोमीटर क्षेत्र में किसानों का कूड़ा उठाया जा रहा था, लेकिन करीब 2 माह से कूड़ा उठाने व पेयजल की व्यवस्था के साथ शौचालय नहीं होने से किसानों को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता है।
आंदोलनकारियों की ज़िद्द के कारण रोज़ाना हज़ारों लोगों को तकलीफ हो रही है। इससे इन्हें को कोई परवाह नहीं है। महामारी के बीच गंदगी के कारण टिकरी बाॅर्डर पर बीमारी फैलने का डर है। इससे भी किसानों को शायद कोई समस्या नहीं है इसलिए अपनी जिद्द पर अड़े हैं। किसान अब धमकी दे रहे हैं कि उनके पास कूड़ा करकट फेंकने के लिए कोई स्थान नहीं है। वे सरकारी कार्यालयों के सामने ही कूड़ा करकट डालेंगे और सड़क पर जाम लगाएंगे।
सरकार को धमकी किसानों ने पहली बार नहीं दी है। इससे पहले भी किसान सरकार को धमकी दे चुके हैं। किसान आंदोलन स्थल पर सफाई व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल है। हज़ारों की संख्या में किसान आंदोलन कर रहे हैं लेकिन साफ़ – सफाई यह सभी दूर हैं। दिल्ली की सीमाओं को घेरकर बैठे किसान लगातार लोगों के लिए आफत बने हुए हैं।
किसान नेता अभी तक बोलते आ रहे थे कि यह आंदोलन राजनीती से दूर है। वही नेता इन दिनों बंगाल में ममता बनर्जी के समर्थन में वोट मांग रहे हैं। किसानों को बरगला कर इस आंदोलन को तूल दिया जा रहा है। कई विपक्षी दल इसे सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ एक अवसर के रूप में देख रहे हैं।