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मुगलों से लेकर पांडवों तक फरीदाबाद के इस गांव का यह है ऐतिहासिक महत्व

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फरीदाबाद स्मार्ट सिटी औद्योगिक नगरी होने के साथ-साथ ऐतिहासिक नगरी भी है। यहां की धरती कई शूरवीरों के आगमन के साक्ष्य रह चुकी है। यहां करीब 50 से ऊपर गांव है परंतु कुछ गांव का अपना एक अलग ही ऐतिहासिक महत्व है जिसमें तिलपत का विशेष स्थान है।

तिलपत फरीदाबाद ज़िले में यमुना नदी के किनारे स्थित एक गांव है। वर्तमान समय में इस गांव को केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने गोद लिया हुआ है।

मुगलों से लेकर पांडवों तक फरीदाबाद के इस गांव का यह है ऐतिहासिक महत्व

यह है तिलपत गांव का इतिहास
10 मई 1666 को जाटों व औरंगजेब की सेना में तिलपत में लड़ाई हुई। लड़ाई में जाटों की विजय हुई। मुगल शासन ने इस्लाम धर्म को बढावा दिया और किसानों पर कर बढ़ा दिया। गोकुला ने किसानों को संगठित किया और कर जमा करने से मना कर दिया। औरंगजेब ने बहुत शक्तिशाली सेना भेजी। गोकुला को बंदी बना लिया गया और 1 जनवरी 1670 को आगरा के किले पर जनता को आतंकित करने के लिये टुकडे़-टुकड़े कर मारा गया। गोकुला के बलिदान ने मुगल शासन के खातमें की शुरुआत की।

महाभारत काल में पांडवों ने दुर्योधन से जो पांच गांव मांगे थे, उनमें एक तिलपत भी था। 1930 में गांव में संत बाबा सूरदास (भगवान कृष्ण की भक्ति आधारित काव्य लिखने वाले सूरदास से इनका कोई संबंध नहीं है) आए थे। उस समय गांव में जवान महिलाएं विधवा हो जाती थीं। तब बाबा ने गांव के लोगों को ‘श्री राधा वल्लभ, श्री हरि वंश, श्री वृदांवन श्री मनचंद’ मंत्र दिया और इसका बार बार स्मरण करने को कहा। इस मंत्र के असर से गांव सुखी व संपन्न हो गया। बाबा सूरदास गांव में काफी लंबे समय तक रहे।

मुगलों से लेकर पांडवों तक फरीदाबाद के इस गांव का यह है ऐतिहासिक महत्व

फरीदाबाद में महावतपुर, पलवली, वजीरपुर, मवई और बल्लभगढ़ गांवों में भी बाबा गए। सभी जगह उनके मंदिर बने हुए हैं। आज भी बाबा द्वारा बताए गए मंत्र का लोग श्रद्धापूर्वक उच्चारण करते हैं। बाबा के जब प्राण छोड़ने पर अंतिम संस्कार के बाद लोग उनकी राख गांव में लेकर आए और यहां बाबा का समाधि स्थल बना दिया। हर मंगलवार को मंदिर पर मेला लगता है।

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