अष्टमी के शुभ अवसर पर वैष्णोदेवी मंदिर में हुई मां महागौरी की विशेष पूजा

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नवरात्रों के आठवें दिन यानि कि अष्टमी पर सिद्धपीठ मां वैष्णोदेवी मंदिर तिकोना पार्क में मां महागौरी की भव्य पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर मंदिर में प्रातःकालीन आरती के दौरान मां महागौरी की पूजा और हवन यज्ञ किया गया। श्रद्धालुओं ने मां महागौरी से मन की मुराद मांगी। इस अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा के लिए पधारे श्रद्धालुओं ने मां से आर्शीवाद मांगा।


इस मौके पर सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया। काफी अधिक संख्या में श्रद्धालुओं ने मंदिर में पहुंचकर मां महागौरी की पूजा की और अर्शीवाद ग्रहण किया। इस अवसर पर विशेष तौर पर मंदिर में मौजूद प्रधान जगदीश भाटिया ने मंदिर में आने वाले भक्तों से टीकाकरण लगवाने की अपील की।

अष्टमी के शुभ अवसर पर वैष्णोदेवी मंदिर में हुई मां महागौरी की विशेष पूजा


बता दें कि नवरात्रों के विशेष पावन अवसर पर मंदिर में टीकाकरण का कैंप लगाया गया है। भाटिया ने कहा कि महामारी से लड़ाई लड़ने के लिए सभी लोगों को व टिका अवश्य लगवानी चाहिए। तभी हम इस जानलेवा बीमारी से जीत पाएंगे। उन्होंने मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से सोशल डिस्टेंस और मास्क लगाने के नियमों का पालन करने की भी अपील की।


पूजा अर्चना के अवसर पर भाटिया ने श्रद्धालुओं को मां महागौरी के धार्मिक एवं पुरौणिक इतिहास की भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मां महागौरी को शुद्ध देसी घी से बना हलवा-पूडी का प्रसाद अतिप्रिय है। इसलिए जो भक्त सच्चे मन से मां महागौरी को इस प्रसाद का भोग लगाते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं तथा मां उन पर हमेशा अपना आर्शीवाद बनाकर रखती हैं। मां महागौरी को गुलाबी रंग सबसे अधिक प्रिय है। श्री भाटिया ने बताया कि हरिद्वार कनखल में मां महागौरी को समर्पित विशेष मंदिर है। वहां उनकी विशेष पूजा की जाती है।

अष्टमी के शुभ अवसर पर वैष्णोदेवी मंदिर में हुई मां महागौरी की विशेष पूजा

भाटिया ने भक्तों को बताया कि मां कालरात्रि का जन्म कैसे और किन हालातों में हुआ। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।