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काल का दूसरा नाम माहमारी,श्मशान में नही मिली जगह तो पार्किंग में करना पड़ा अंतिम संस्कार

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फरीदाबाद : महामारी संक्रमण से प्रभावित लोगों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। अस्पतालों में पैर रखने की जगह नहीं हैं तो श्मशान घाटों पर शवो को जलाने तक जगह नहीं है। वही महामारी लगातार फरीदाबाद में बेरहमी से फैलती जा रही है ।

फरीदाबाद के सैनिक कॉलोनी के पास बने श्मशान घाट में शेड के अंदर अंत्येष्टि के लिए बनाई गई जगह भी अब कम पड़ रही है। इसी वजह से अब पार्किंग में मृतकों की अंत्येष्टि करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

काल का दूसरा नाम माहमारी,श्मशान में नही मिली जगह तो पार्किंग में करना पड़ा अंतिम संस्कार

शहर में आज के हालातों की बात करें तो आज लगभग 10 से 12 डेड बॉडी आई है जो की जगह ना मिलने के कारण कार पार्किंग मैं ही अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है

10 से 12 डेड बॉडी पार्किंग में और लगभग 12 शवों के आस-पास अंदर किया गया अंतिम संस्कार 25 के आसपास आज डेड बॉडी आई हैं मजबूरन श्मशान घाट की पार्किंग में मृतकों की अंत्येष्टि करनी पड़ रही है।

काल का दूसरा नाम माहमारी,श्मशान में नही मिली जगह तो पार्किंग में करना पड़ा अंतिम संस्कार

नगर निगम के नोडल अधिकारी राजेंद्र दहिया ने बताया कि पिछले 24 घंटे में 24 करो ना मरीजों का अंतिम संस्कार किया गया है तो वहीं उन्होंने कहा कि मरने वालों के फूल पहले 3 दिन बाद परिजन उठाया रहे थे जिसकी वजह से अधिक समय लग रहा था ।

लेकिन अब लोगों को 24 घंटे के अंदर फूल उठाने के लिए कहा गया है साथ ही उन्होंने कहा कि नंबर 3 श्मशान घाट में पार्किंग की जगह में हुए अंतिम संस्कार पर कहा कि लोगों ने आसपास के क्षेत्र में बसे लोगों ने विरोध दर्ज कराया है क्योंकि उनके घरों तक डेड बॉडी का धुआं जा रहा था।

काल का दूसरा नाम माहमारी,श्मशान में नही मिली जगह तो पार्किंग में करना पड़ा अंतिम संस्कार

श्मशान घाट में काम करने वाले व्यक्ति का कहना है शेड के अंदर जगह कम होने के चलते डेड बॉडी को श्मशान घाट की पार्किंग में जलाना पड़ रहा है।


क्योंकि अंत्येष्टि के बाद परिजन अब तक मृतक के फूल चुनने के लिए तीसरे दिन आ रहे थे जिस वजह से शेड में जगह नहीं मिल रही थी लेकिन अब मृतक के परिजनों को अगले दिन ही फूल ले जाने के लिए कहा गया है।

काल का दूसरा नाम माहमारी,श्मशान में नही मिली जगह तो पार्किंग में करना पड़ा अंतिम संस्कार

इस तरह के हालात सोचने को मजबूर कर रहे है की क्या मंजर देखने को मिल रहा है कैसे हम इस मुश्किल घड़ी से बाहर निकल पाएंगे ।

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