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लॉकडाउन है या मजाक, सड़कों पर उमड़ी भीड़ ने बढ़ते संक्रमण को रोकने की योजना को किया खाक

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कोविद-19 के कारण आमजन का जीवन तितर-बितर हो गया है। हर कोई इस शब्द से और इस के कहर से इस कदर विचलित होता है कि बस जिसे देखो हाथ जोड़ “बस बहुत हुआ अब रहम करो” यही कहता सुनाई देता है।

आमजन के अलावा प्रदेश के मंत्री गण भी इस संक्रमण के कहर से इस कदर प्रभावित हो चुके हैं कि लॉकडाउन के माध्यम से आमजन को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं, और पुलिस प्रशासन के माध्यम से लागू की गई पाबंदियों को पालन करने हेतु अपना समर्थन करने को अभी प्रेरित कर रहे हैं।

लॉकडाउन है या मजाक, सड़कों पर उमड़ी भीड़ ने बढ़ते संक्रमण को रोकने की योजना को किया खाक

मगर बड़े कुंठित मन से कहना पड़ रहा है कि प्रशासन के दावे खोखले साबित हो रहे है। एक तरफ जहां सरकार ने लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों से लेकर अन्य सुविधाओं को पूर्ण व्यवस्थित करने की बात कही थी। मगर अव्यवस्थाओं के चलते आज भी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है,

तो फिर लॉक डाउन का क्या फायदा हुआ। आमजन एक यही सवाल पूछती है कि अगर लॉकडाउन के दौरान भी सरकार अपने कार्यों को करने में विफल हो रही है, तो लॉकडाउन करके आम जनता को क्यों परेशान किया जा रहा है, आखिर क्यों उनकी परेशानी को बढ़ाया जा रहा है।

लॉकडाउन है या मजाक, सड़कों पर उमड़ी भीड़ ने बढ़ते संक्रमण को रोकने की योजना को किया खाक

स्वस्थ व्यवस्थाओं के चलते अभी भी अस्पतालों में मरीज दम तोड़ने को मजबूर हैं। कोई भी ऐसा अस्पताल नहीं है चाहे वह निजी अस्पताल हो या फिर सरकारी अस्पताल जो इस समय मरीजों से अटा हुआ दिखाई ना दे रहा हो। यदि प्रशासन व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में नाकाम या भी होनी थी तो उन्हें इस तरह का जुमला आमजन के साथ नहीं खेलना चाहिए था।

एक तरफ तो लोग अपनों को आंखों के आगे दम तोड़ते देख रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अस्पतालों की व्यवस्थाओं पर हजारों सवाल खड़े हो रहे हैं, लेकिन आमजन को और उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई भी नहीं है।

लॉकडाउन है या मजाक, सड़कों पर उमड़ी भीड़ ने बढ़ते संक्रमण को रोकने की योजना को किया खाक

शायद ही ऐसा कोई मंजर होगा जिसे इन दिनों देखकर दिल कांप नहीं उठता होगा। ऐसी ऐसी तस्वीरें प्रतिदिन सामने आ रही है कि मन को इस कदर विचलित कर देती है कि बस आंखों में नमी दिखाई देती है। मगर क्या कहे ऐसी सरकार का, ऐसी प्रशासन का जो यह मंजर देखने के बाद भी अपने कार्यों को करने में फुर्ती तो दूर उसको समय पर करने में भी सक्षम नहीं दिखाई दे रही है।

खैर बस अब यही कहा जा सकता है कि सरकार अपनी आंखों पर जो पट्टी बांध रही है उसे खोलें और एक बार धरातल पर उतर कर वास्तविकता देखें ताकि वास्तव में लोग जो सांसों के लिए तरस रहे हैं उन्हें जीवन मिल सके।

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