Super Hero:- दोस्त के पिता की मृत्यु के दौरान नहीं मिली एंबुलेंस सेवा, तो दो दोस्तों ने किराये की गाड़ी को बना दी एम्बुलेंस

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कहते हैं दोस्ती का एक ऐसा रिश्ता है जो हम खुद अपनी मर्जी से जोड़ते हैं। बाकी सभी रिश्ते भगवान बना कर भेजते हैं। लेकिन अगर वही दोस्त दुख की घड़ी में साथ देते हैं। तो सगे परिजनों से बड़ा वह दोस्त हो जाता है। 27 अप्रैल को एक दोस्त के पिता महामारी से ग्रस्त होने की वजह से मृत्यु हो गई।

उस दोस्त के पिता की डेड बॉडी को श्मशान घाट तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस ने उनसे ₹20000 मांगे। जो कि उसके घर से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर था। इस घटना को सुनने के बाद दो दोस्तों ने एक किराए की गाड़ी को भी एंबुलेंस बना दिया और लोगों की सेवा में जुट गए।

Super Hero:- दोस्त के पिता की मृत्यु के दौरान नहीं मिली एंबुलेंस सेवा, तो दो दोस्तों ने किराये की गाड़ी को बना दी एम्बुलेंस

जी हां हम बात कर रहे हैं ग्रीन फील्ड कॉलोनी के रहने वाले गौतम खन्ना और कुलदीप की। गौतम खन्ना और कुलदीप ने बताया कि 27 अप्रैल को उनके एक दोस्त के पिता की महामारी से ग्रस्त होने की वजह से मृत्यु हो गई थी। उस दौरान उसके दोस्त को एंबुलेंस सेवा नहीं मिली।जिसकी वजह से उनको काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

Super Hero:- दोस्त के पिता की मृत्यु के दौरान नहीं मिली एंबुलेंस सेवा, तो दो दोस्तों ने किराये की गाड़ी को बना दी एम्बुलेंस

तभी उन दोनों दोस्तों ने सोचा कि क्यों ना इस महामारी के दौर में एक एंबुलेंस सेवा को शुरू किया जाए। जो कि फ्री ऑफ कॉस्ट हो। क्योंकि इस समय भी एंबुलेंस अपना फायदा देख रही है और महामारी से ग्रस्त मरीजों के परिजनों से हजारों रुपए मात्र 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर ले जाने के लिए ले रही है।

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उसके बाद से उन दोनों दोस्तों ने एक किराए की इको गाड़ी को एंबुलेंस सेवा में तब्दील कर दिया। उन्होंने बताया कि उनको इस सेवा शुरू करें हुए करीब 4 दिन हो चुके हैं और 10 से ज्यादा महामारी से ग्रस्त मरीजों की डेड बॉडी को वह श्मशान घाट तक पहुंचा चुके हैं। उन्होंने बताया कि कई ऐसी डेड बॉडी भी उनके सामने आई है।

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जिसके परिजनों ने उस को हाथ लगाने से मना कर दिया और उन दोनों ने पूरे रीति-रिवाज के साथ उन डेड बॉडी की अंतिम संस्कार किया। इस सेवा के दौरान वह दोनों अपनी पूरी सेफ्टी का ध्यान रखते हैं। पीपीई किट पहनकर ही लोगों की सेवा करते हैं। साथ ही अपने आप को समय-समय पर सैनिटाइज भी करते हैं। वह गाड़ी को भी सेनीटाइज करते हैं। ताकि वह इस बीमारी से बच सके और लोगों की सेवा में अपना सहयोग दे सके।