संक्रमण के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए देश भर के वैज्ञानिक नी नई तरकीब निकाल रहे हैं। इतना ही नहीं कहीं कहीं तो कई राज्यों से वैक्सीन व्यर्थ होने की सूचना से परेशान विशेषज्ञ अब इसके सभी कारणों को खत्म करने की पहल में जुट गए हैं।
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि टीकाकरण का जो पुराना तरीका था उसे ही कोरोना काल में थोड़ा बदलाव करके अपनाया जाना चाहिए।
ऐसे में हरियाणा स्वास्थ्य विभाग के सेवानिवृत्त उपनिदेशक डाक्टर रविंद्र माथुर मानते हैं कि पहले भी अपने देश में अनेकों बार टीकाकरण के सफल अभियान चले हैं। इनकी सफलता के पीछे का कारण यही रहा है कि टीकाकरण समूह में लगाए गए।
मसलन, थर्मोकोल के एक छोटे बाक्स में इंजेक्शन की वायल ( दवा की शीशी ) रखकर तीन या चार स्वास्थ्यकíमयों का एक दल गांव, शहर के मुहल्लों में जाता और घर-घर जाकर डोज लगा देता।
उनका कहना है कि कई बार तो एक वायल में तय मात्रा से ज्यादा डोज की दवा भी निकल जाती थी। दल जब अपनी रिपोर्ट में यह बताता था कि दवा से ज्यादा डोज लगाई गई है तो उन्हें शाबासी भी मिलती थी।
कोरोना संक्रमण से बचाव की वैक्सीन को भी समूह के रूप में लगाया जा सकता है। इसमें फिलहाल कुछ शारीरिक दूरी जैसे कोविड नियम हैं, वे भी गांवों में आंगनबाड़ी और शहरों में पार्क या सामुदायिक भवनों में पूरे किए जा सकते हैं।
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