चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोनावायरस लगभग 3 महीने बाद अब भारत देश में भी विकराल रूप धारण कर चुका है। जिसके चलते अभी तक करीब दो लाख पॉजिटिव मामले भारत में सामने आ चुके हैं और यह आंकड़े रोजाना हजारों की संख्या में बढ़ रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि भारत में अन्य देशों के मुकाबले कोरोना से मरने वाले लोगों की दर काफी कम है लेकिन बावजूद इसके भारत में भी अभी तक हजारों लोगों की मौत इस घातक वायरस के कारण हो चुकी है और मौत का यह आंकड़ा लगातार तेजी से बढ़ता जा रहा है।
कोरोना के बढ़ते आंकड़ों को लेकर एम्स के डॉक्टरों और आईसीएमआर शोध समूह के दो सदस्यों सहित स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक समूह का कहना है कि देश की घनी और मध्यम आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना वायरस संक्रमण के सामुदायिक प्रसार की पुष्टि हो चुकी है।
वहीं सरकार बार-बार यह कह रही है कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण सामुदायिक प्रसार के स्तर पर नहीं पहुंचा है जबकि सोमवार तक देश में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 5610 पर पहुंच गई और संक्रमण के कुल मामले 1,99,613 हो गए हैं।
इसी के चलते भारतीय लोक स्वास्थ्य संघ(आईपीएचए), इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन(आईएपीएसएम) और भारतीय महामारीविद संघ (आईएई) के विशेषज्ञों द्वारा संकलित एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है की , “देश की घनी और मध्यम आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना वायरस संक्रमण के सामुदायिक प्रसार की पुष्टि हो चुकी है और इस स्तर पर कोविड-19 को खत्म करना अवास्तविक जान पड़ता है।”
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन महामारी के प्रसार को रोकने और प्रबंधन के लिए प्रभावी योजना बनाने के लिए किया गया था ताकि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली प्रभावित ना हो। यह संभव हो रहा था लेकिन नागरिकों को हो रही असुविधा और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास में चौथे लॉकडाउन में दी गई राहतों के कारण यह प्रसार बढ़ा है।
इस विषय में विशेषज्ञों का कहना है कि नीति निर्माताओं ने स्पष्ट रूप से सामान्य प्रशासनिक नौकरशाहों पर भरोसा किया जबकि इस पूरी प्रक्रिया में महामारी विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, निवारक चिकित्सा और सामाजिक वैज्ञानिकी क्षेत्र के विशेषज्ञों की भूमिका काफी सीमित रही।