संक्रमण के बढ़ते मामलों के साथ साथ ही अस्पताल में मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है और यही कारण है कि अस्पतालों में बेड के लिए मारामारी जैसी समस्या आम होती हुई नजर आ रही है इसी के चलते अब प्रदेश सरकार ने उक्त मामले में रिपोर्ट तलब की है।
जिसमें मुख्य सचिव विजय वर्धन द्वारा सभी उपायुक्तों से 2 दिन में सरकारी से लेकर निजी अस्पतालों व मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले संक्रमित मरीजों की स्टेटस रिपोर्ट तलब करने की बात कही है। इस रिपोर्ट के अनुसार उपायुक्त को बताना होगा कि अस्पताल में भर्ती कितनी मरीज गांव से है और कितनी शहर से हैं
वहीं दूसरे प्रदेशों के कितनी मरीजों का उपचार भी अपने प्रदेश में किया जा रहा है। उपायुक्तों को निर्धारित फार्मेट में हर अस्पताल में उपलब्ध सामान्य बेड, आक्सीजन बेड, आइसीयू बेड और वेंटीलेटर सहित अन्य संसाधनों का विस्तृत ब्योरा रिपोर्ट में देना होगा।
जानकारी के मुताबिक प्रदेश में एक लाख से ज्यादा संक्रमित घर पर ही (होम आइसोलेट) कोरोना को हराने की जिद्दोजहद में जुटे हुए हैं। सरकारी रिपोर्ट की मानें तो सिर्फ दस से 15 हजार संक्रमित ही ऐसे हैं, जो गंभीर हैं और उन्हें बेड की आवश्यकता है। इसके उलट हर रोज बेडों की संख्या बढ़ने के बावजूद भी स्थिति जस-की-तस बनी हुई है। खासकर प्राइवेट अस्पतालों में बेडों का संकट है।
वहीं फिलहाल ऑक्सीजन आपूर्ति का सिस्टम भी गड़बड़ाया हुआ है। सरकारी दावों के अनुसार प्रदेश में आक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में है। इसके बावजूद प्रदेश में ऑक्सीजन की किल्लत है। कई प्राइवेट अस्पताल निर्धारित कोर्ट से ज्यादा आक्सीजन की मांग कर रहे हैं,
जबकि पोर्टल पर बेडों की संख्या का सही ब्योरो नहीं दे रहे हैं। इससे ऑक्सीजन आवंटन का सिस्टम बिगड़ रहा है। खासकर एनसीआर और जीटी रोड बेल्ट पर ऑक्सीजन की मांग हर रोज बढ़ रही है। आखिर आक्सीजन की डिमांड बेडों की संख्या के मुताबिक है या नहीं, इसकी जांच करने के लिए सरकार ने अस्पतालों में उपचाराधीन मरीजों की रिपोर्ट तलब की है।
इस सबसे अहम बात तो यह है कि निजी अस्पताल अपने यहां दाखिल दिल्ली के संक्रमित मरीजों की रिपोर्ट नहीं दे रहे हैं। इस पर खुद मुख्यमंत्री भी नाराजगी जता चुके हैं। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का मानना है कि प्रदेश में उपचाराधीन 60 से 70 फीसद संक्रमित दिल्ली के हैं जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ा है। 2 दिन के अंतराल अलग होते ही यह सारी बातें साफ हो जाएंगे कि आखिर अस्पतालों में मरीजों के लिए बेड की संख्या इतनी तेजी से क्यों घटट गई है।