प्लास्टिक के बेकार बोतल से पौधों में फूंक रहे नई जान, जानिये कैसे शिक्षक के इस जुगत से तेजी से बढ़ रेह हैं पौधे

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    इस समय पर्यावरण संबंधी चिंता सभी को है। कई लोग इसे बचाने के लिए काफी सारे प्रयास भी कर रहे हैं। सुरक्षा के साथ पौधों को बचाने का नायाब तरीका एक शिक्षक ने ईजाद किया है। राजाबासा गांव में एक शिक्षक ने बेकार हो चुके हजारों पानी की बोतलों को काट कर उसे टपक विधि से पौधों में पानी देने का एक तरीका खोज निकाला है। इससे पौधे को हर समय जरूरत के हिसाब से पानी मिलता रहता है। इसका फायदा भी दिखाई देने लगा है। लगातार पानी मिलने से पौधे तेजी से बढ़ भी रहे हैं।

    वर्तमान दौर में पर्यावरण असंतुलन तेज़ी से बढ़ रहा है। ऐसे में छोटे – छोटे प्रयासों से कम इसे बचा सकते हैं। इस संबंध में शिक्षक तरुण ने कहा कि लोग पानी पीने के बाद बोतल फेंक देते हैं। जगह-जगह बोतल फेंका हुआ दिखाई देता है। प्लास्टिक का बोतल जल्दी गलता भी नहीं है, साथ ही यह जमीन को बेकार भी बना देता है।

    प्लास्टिक के बेकार बोतल से पौधों में फूंक रहे नई जान, जानिये कैसे शिक्षक के इस जुगत से तेजी से बढ़ रेह हैं पौधे

    प्लास्टिक का बोतल जल्दी गलता भी नहीं है। यह पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है। तरुण ने कहा इस पर हमने एक प्‍लान बनाया। इसमें बेकार प्लास्टिक की बोतलों को जमा किए। उन बोतलों के पेंदा को काटकर थोड़ा छोड़ दिया। इसके बाद उसे उलटा कर ढ़क्कन को थोड़ा खोल दिए। इससे पानी बहुत कम मात्रा में लगातार टपक कर गिरती है।

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    पर्यावरण असंतुलन की सबसे बड़ी समस्या ग्लोबल वॉर्मिंग भी है। प्लास्टिक की तरफ ध्यान देना और पेड़ों को भूल जाना यह इसका एक मुख्य कारण है। लेकिन तरुण बताते हैं कि उनके जुगत से एक बोतल में पानी सुबह में डालने पर वह दिन भर एक-एक बूंद के हिसाब से गिरता रहता है। किसी पौधे के सामने एक लकड़ी गाड़ कर उसमें बोतल को बांध देते हैं। बोतल से पानी लगातार उस पौधा को दिन भर मिलता रहता है। साथ ही पानी की बर्बादी भी नहीं होती है।

    प्लास्टिक के बेकार बोतल से पौधों में फूंक रहे नई जान, जानिये कैसे शिक्षक के इस जुगत से तेजी से बढ़ रेह हैं पौधे

    पर्यावरण को बिगाड़ा भी हमने है और सुधारना भी हमें है। पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और मानव जीवन के कदम विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे समय में अगर हमने पर्यावरण को बचाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।