नए कृषि कानूनों की होड़ में किसान के रूप में आंदोलन में बैठे देशविरोधी तत्व महामारी का प्रकोप बढ़ा सकते हैं। किसानों के इस आंदोलन के छह महीने पूरे हो गए हैं। आंदोलन लंबा खिंचता देख धरनास्थल पर आंदोलनकारियों ने एक बार फिर से ईंट व सीमेंट से पक्का निर्माण कर लिया है। आंदोलनकारियों ने बार्डर से लेकर केएमपी-केजीपी जीरो प्वाइंट तक इस तरह के करीब 12-14 घर बना लिए हैं।
ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से शुरू हुआ आंदोलन टेंट सिटी और झोपडियों में बस चुका है। हाईवे पर पक्के मकान बन चुके हैं। किसानों ने तीज-त्योहार भी यहीं मनाए। इससे पहले जीटी रोड पर पक्का निर्माण करने पर आंदोलनकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई थी। पक्का निर्माण करने पर पुलिस की ओर से नोटिस देने की बात कही जा रही है।
आंदोलन को कुछ किसान नेता तूल दे रहे हैं। नेता के रूप में शायद यह इनके लिए दुश्मन बनकर आये हैं। क्योंकि कृषि कानूनों के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन का फिलहाल समाप्त होता नहीं दिख रहा है। सरकार और संयुक्त मोर्चा के सदस्यों के बीच 12 दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला है।
कई जिलों समेत दिल्ली में 26 जनवरी को हिंसा हो चुकी है। महामारी का प्रसार गांवों तक इसी आंदोलन के कारण ज्यादा पहुंच रहा है। आंदोलन को लंबा खिंचता देख किसानों ने अब बार्डर के पास जीटी रोड के साथ स्थायी पक्के मकान बना लिए हैं। ये मकान ईंट, सीमेंट और गारे से बनाए गए हैं, ताकि धूप व बारिश से वे बच सकें। पक्के निर्माण से वे यह भी संदेश देना चाहते हैं कि आंदोलनकारी यहां लंबे समय तक डटे रहेंगे।
दिल्ली-एनसीआर को बंधक बनाये बैठे किसान अपनी जिद्द पर अभी भी अड़े हुए हैं। राकेश टिकैत समेत कुछ अन्य किसान नेता इस आंदोलन को पहले से ही तूल देते आये हैं। विपक्ष भी इनके साथ मिलकर देश में किसानों को महामारी का बम बनाने में तुला हुआ है।