महामारी का संकट गांवों में भी पहुंच गया है। शहर में बड़ी तबाही मचाने के बाद गांवो का रुख महामारी ने पकड़ा है। हरियाणा के सिरसा जिले में सात गांव ऐसे हैं, जिनमें एक भी पॉजिटिव केस नहीं है। इनमें से किसी भी गांव की आबादी 5 हजार से ज्यादा की नहीं है। क्षेत्र और जनसंख्या के लिहाज से बेशक से ये छोटे हैं, लेकिन इन्होंने बड़ी सोच का परिचय दिया है। वो भी ऐसे वक्त में जब प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी प्रोटोकोल की सरेआम धज्जियां उड़ाई गईं।
यह कहना जरा भी गलत नहीं होगा कि महामारी की दूसरी लहर ने लोगों के आंसू निकाल दिए हैं। गांवों में भी इसका संकट है। सिरसा के इन गांवों में लोगों ने अपने परिवार ही नहीं पूरे गांवों को सुरक्षित रखा। इन गांवों के लोग दूसरे गांवों में नहीं गए और बाहरी लोगों को अपने गांव में आने नहीं दिया। इतना ही नहीं लोगों ने महामारी काल में शादियों पर पाबंदी लगा दी। तय शादियां भी लोगों ने निरस्त कर दी।
अपनों को खोने का गम अभी तक लोगों के ज़हन में ज़िंदा है। हरियाणा समेत पूरे देश में महामारी की दूसरी लहर ने कोहराम मचा रखा है। लेकिन इन गांवो में सामाजिक कार्यक्रम तक नहीं हुए, वहीं किसी बुजुर्ग की नॉर्मल डेथ हुई, तो खुद परिजनों ने अनाउंसमेंट करवा दी कि महामारी में कोई उनके बैठने न आए। उनको किसी से कोई गिला शिकवा नहीं है। ग्रामीणों के सामूहिक प्रयासों की वजह से महामारी की इन गांवों में एंट्री नहीं हुई।
दूसरी लहर के कमज़ोर पड़ने के बाद प्रदेश सरकार तीसरी लहर से निकपटने के इंतिज़ाम अभी से कर रही है। सिरसा के गांव माखा में दो हजार की आबादी है, लेकिन कोई महामारी से रोगी नहीं है। ग्रामीणों के सामूहिक प्रयासों से बाहरी लोगों को बिना मास्क और सैनिटाइज के गांव में नहीं आने दिया गया। लॉकडाउन से पहले ही ग्रामीणों ने बाहर जाना बंद कर दिया था।
दूसरी लहर से निपटते हुए हरियाणा खुद को तीसरी लहर का भी मजबूती के साथ मुकाबला करने की तैयारी कर रहा है। महामारी से इस समय भले ही थोड़ी राहत मिलती दिखाई दे रही हो लेकिन जितने भी लोगों को इसने अपनी चपेट में लिया है उन सभी को कुछ न कुछ इसने घाव ज़रूर दिए हैं।