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दूसरे के दर्द को समझा अपना दर्द, खुद ने ही खोला ट्रेनिंग सेंटर

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दर्द तो सब को होता है, लेकिन अगर वही दर्द जब अपने पर बीती है तभी पता चलता है कि दर्द कितना होता है। इसलिए कहते हैं कि दूसरों के दर्द को भी अपना दर्द समझना चाहिए। ऐसे ही एक शख्स फरीदाबाद में मौजूद है। जिसके घर में जब आप बीती थी, तभी उसने दूसरों को दर्द को समझा।

उसके घर में खुद का बेटा मानसिक रूप से विक्षिप्त था। तो उसने जिले के सभी मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चों के बारे में सोचा और एक स्कूल उन बच्चों के लिए खोल दिया जिसका नाम है सहयोग ट्रेनिंग सेंटर। सेक्टर 15 के रहने वाले आर के विग ने बताया कि उनका छोटा बेटा मेंटली रिटारडेड है।

दूसरे के दर्द को समझा अपना दर्द, खुद ने ही खोला ट्रेनिंग सेंटर

जिसके चलते हैं वह उसको दिल्ली स्पेशल स्कूल में लेकर जाया करते थे। उस दौरान उनको बच्चे को दिल्ली लाने ले जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। तो उन्होंने सोचा कि जब उनको इतनी परेशानी हो रही है, तो जिले के जो अन्य मेंटली रिटारडेड बच्चे हैं उनको व उनके परिजनों को कितनी परेशानी होती होगी।

इसी के चलते उन्होंने साल 1994 एक ट्रेनिंग सेंटर खोला जिसका नाम सहयोग ट्रेनिंग सेंटर रखा गया और उनके पास उस मात्र जिले के तीन ही बच्चे ट्रेनिंग के लिए स्कूल में आया करते थे। उसके बाद उनको एजुकेशन डिपार्टमेंट की ओर से अज़रौंदा चौक जमीन अलॉट की गई और उन्होंने वहां पर ट्रेनिंग सेंटर खोला।

दूसरे के दर्द को समझा अपना दर्द, खुद ने ही खोला ट्रेनिंग सेंटर

लेकिन कुछ समय पहले मेट्रो स्टेशन बनने की वजह से उनको वह से स्कूल को बंद करना पड़ा। जिसके बाद एजुकेशन डिपार्टमेंट की ओर से सेक्टर 9 के प्राइमरी स्कूल में उन को जगह दी गई। वही  दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के द्वारा ट्रेनिंग सेंटर की बिल्डिंग का निर्माण किया गया।

उन्होंने बताया कि अब उनके पास जिले के 40 बच्चे ट्रेनिंग के लिए आते हैं। बच्चों को डिसिप्लिन में रखने के लिए उनके द्वारा मात्र ₹500 फीस रखी गई है। ताकि परिजनों और बच्चों को लगे कि वह डिसिप्लिन स्कूल में जा रहे हैं। अगर वह फीस नहीं रखते हैं तो बच्चे स्कूल को सीरियस नहीं लेते हैं और वह छुट्टी करते रहते हैं।

दूसरे के दर्द को समझा अपना दर्द, खुद ने ही खोला ट्रेनिंग सेंटर

इसीलिए उनकी संस्था के द्वारा मात्र ₹500 फीस के तौर पर ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि इन बच्चों को घर से लाने और ले जाने के लिए उन्होंने तीन गाड़ियां लगाई हुई है। जो बच्चों को सुबह 7:00 बजे घर से पिक करती है।

वह 3:00 बजे घर पर ड्रॉप करती है। इन बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए उनके पास वेल एजुकेटेड स्पेशल टीचर मौजूद है। जिनको सैलरी देते हैं। इनके पास कोई भी फ्री में सेवा नहीं करता है। सभी को वह सैलरी देते हैं।

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चाहे वह कर्मचारी हो या टीचर। उन्होंने बताया कि इन बच्चों की देखरेख व स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उनके साथ निजी अस्पताल के डॉक्टर भी जुड़े हुए हैं। जो समय-समय पर ट्रेनिंग सेंटर पर आकर बच्चों का चेकअप करते हैं।

विदेश के बच्चे भी लेते हैं ट्रेनिंग

उन्होंने बताया कि हर साल विदेश से करीब 50 से 60 बच्चे जो मेंटली रिटारडेड होते हैं। उनके ट्रेनिंग सेंटर पर आकर ट्रेनिंग लेते हैं। वह करीब यहां पर 1 महीने के लिए रुकते हैं और उनके खाने पीने रहने की जिम्मेवारी पैकेज के द्वारा की जाती है।

दूसरे के दर्द को समझा अपना दर्द, खुद ने ही खोला ट्रेनिंग सेंटर

राष्ट्रपति के साथ बना चुके हैं

उन्होंने बताया कि उनके सहयोग ट्रेनिंग सेंटर के बच्चे दो बार पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के साथ होली बना चुके हैं। राष्ट्रपति भवन से ही उनके पास कॉल आया था कि क्या वह अपने बच्चों को होली वाले दिन राष्ट्रपति भवन लेकर आ सकते हैं। तो उन्होंने कहा कि हां उसके बाद वह बच्चों के साथ पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से उनके बच्चे व वह खुद मिल चुके हैं।

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