पिता मज़दूर, मां दृष्टिहीन, खु़द सुन नहीं सकता था, इसके बावजूद उसने मेहनत की और ऐसे IAS बन गया

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    कोई भी इंसान आपसे अच्छा नहीं है। जो आप कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। आपको बस खुद में भरोसा होना चाहिए। पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और स्वयं सौ प्रतिशत बहरेपन का शिकार राजस्थान रहने वाले मनीराम शर्मा ने आईएएस में आने के लिए जो संघर्ष किया है उसकी मिसाल दी जा सकती है। मनीराम शर्मा का आईएएस बनने का सपना वर्ष 1995 में शुरू हुआ, जिसे पूरा करने में 15 वर्ष का समय लग गया।

    हौसला होना चाहिए बस कुछ कर दिखाने का इस दुनिया में सबकुछ मुमकिन है। कड़ी मेहनत के दम पर आप सबकुछ हासिल कर सकते हैं। उन्होंने 2005, 2006 और 2009 में आईएएस की परीक्षा पास की। 2006 में उन्हें बताया गया कि सौ प्रतिशत बहरा होने के कारण उनका सलेक्शन नहीं हो सकता।

    पिता मज़दूर, मां दृष्टिहीन, खु़द सुन नहीं सकता था, इसके बावजूद उसने मेहनत की और ऐसे IAS बन गया

    आपको एकाग्रता के साथ लक्ष्य तक पहुंचना होता है। उनकी सफलता की कहानी आज हर किसी की ज़ुबा पर है। 2009 में मनीराम शर्मा ने एक बार फिर से हौसला जुटाया और आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण की। कान के ऑपरेशन के लिए आठ लाख रुपए की जरूरत थी। यह रकम किन लोगों ने इकट्ठी की और शर्मा का ऑपरेशन कराया, यह उन्हें भी नहीं मालूम। आखिरकार मनीराम शर्मा 2009 में आईएएस अधिकारी बन गए।

    पिता मज़दूर, मां दृष्टिहीन, खु़द सुन नहीं सकता था, इसके बावजूद उसने मेहनत की और ऐसे IAS बन गया

    आपका हौसला बुलंद होना चाहिए मुकाम तो मिल ही जाता है। इंसान को कभी हार नहीं माननी चाहिए। लगातार अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसे मेहनत करती रहने चाहिए। राजस्थान के गांव बंदीगढ़ में स्कूल नहीं था। मनीराम शर्मा पास के गांव में पांच किलोमीटर दूर पढ़ने जाते थे। लगन ऐसी थी कि दसवीं की परीक्षा में राज्य शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में पांचवां और बारहवीं की परीक्षा में सातवां स्थान हासिल किया।

    पिता मज़दूर, मां दृष्टिहीन, खु़द सुन नहीं सकता था, इसके बावजूद उसने मेहनत की और ऐसे IAS बन गया

    अपनी मेहनत के बलबूते आज मनीराम को काफी लोग अपनी प्रेरणा मानते हैं। उन्होंने जो हासिल किया है उसकी तैयारी कई युवा कर रहे हैं। कई लोग उन्हें रोल मॉडल मानते हैं।