10 सालों तक लगातार हुए अपने प्रयासों में असफल, नहीं मानी हार आज बन गए हैं IAS अफसर कड़ी मेहनत से

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    संघर्ष से जबतक मुलाकात नहीं होगी तब तक सफलता का मतलब पता नहीं चलेगा। समय बदलते ज़रा भी वक्त नहीं लगता है। आपको बुरे वक्त में बस कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। यशवंत मीणा ने साल 2019 की यूपीएससी सीएसई परीक्षा अपने पांचवें अटेम्प्ट में पास की। पहले भी वे चार बार परीक्षा दे चुके थे लेकिन उनका सेलक्शन नहीं हुआ था। पांच प्रयासों को अगर मोटे तौर पर सालों में बदलें तो कम से कम सात साल का समय यशवंत को लगा।

    यूपीएससी की परीक्षा पास करने वाले तमाम कैंडिडेट्स की कहानी काफी प्रेरणादायक होती है। किसी एग्जाम को क्रैक करने के लिए अपने जीवन के इतने साल देना आसान नहीं होता वह भी तब जब इस परीक्षा में सफलता की कोई गारंटी नहीं है। इतने सालों तक यशवंत ने खुद को कैसे मोटिवेटेड रखा और कैसे मेन्स में आंसर लिखकर चयन सुनिश्चित किया।

    10 सालों तक लगातार हुए अपने प्रयासों में असफल, नहीं मानी हार आज बन गए हैं IAS अफसर कड़ी मेहनत से

    यूपीएससी परीक्षा के लिए आमतौर पर यह माना जाता है कि यह दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। यशवंत जयपुर, राजस्थान के रहने वाले हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई भी वहीं हुई। यशवंत ने यूपीएससी की तैयारी शुरू करने से पहले बीटेक किया है। बीटेक पूरा होने के तुरंत बाद से यशवंत यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने लगे थे पर उनका सेलेक्शन नहीं हो रहा था। तीसरे प्रयास में तो यशवंत इंटरव्यू राउंड तक पहुंच गए लेकिन तब भी चयनित नहीं हुए।

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    आपको एकाग्रता के साथ लक्ष्य तक पहुंचना होता है। मंजिल कितनी भी दूर हो कभी हिम्मत नहीं हारना चाहिए क्योंकि पहाड़ों से निकलने वाली नदी कभी किसी से सागर का रास्ता नहीं पूछती। तीसरे प्रयास में भी चयनित नहीं हो कर, इसे जहां लोग निराशा भरी बात कहेंगे वहीं यशवंत को इसमें भी आशा की किरण नजर आई। उन्हें प्रेरणा मिली कि जब वे यहां तक पहुंच सकते हैं तो आगे भी पहुंच सकते हैं। यशवंत ने अपने बचपन के सपने को पाने के लिए कमर कसी और बार-बार की हार से विचलित हुए बिना अटेम्प्ट्स देते गए।

    10 सालों तक लगातार हुए अपने प्रयासों में असफल, नहीं मानी हार आज बन गए हैं IAS अफसर कड़ी मेहनत से

    किसी भी इंसान को सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ सबकुछ हासिल करने की राह पर निकलना पड़ता है। आपको एकाग्रता के साथ लक्ष्य तक पहुंचना होता है। यह मायने नहीं रखता कि आप कहां से आते हैं।