सफलता के लिए यह ज़रूरी नहीं कि आपके पास बहुत पैसे हों। सफलता के लिए आपकी एकाग्रता और आपकी मेहनत की आवश्यकता होती है। पानीपत के गांव शिमला मौलाना की एक बेटी ने देश के लिए गोल्ड मेडल जीता है। इस जीत के पीछे जितनी मेहनत बेटी की है, उतनी ही मेहनत उसके पिता ने भी की है। महामारी के कारण नेशनल बॉक्सिंग एकेडमी बंद थी। यहां की बॉक्सर शिमला मौलाना गांव की विंका ने इसके बावजूद अभ्यास का निर्णय लिया।
आपके सामने चुनौतियां जितनी भी आएं घबराना नहीं चाहिए। हर चुनौती से लड़ना चाहिए। यहां भी सिर्फ विकल्प शिवाजी स्टेडियम था। स्टेडियम आने-जाने के लिए वाहन नहीं था। पिता धर्मेंद्र ने आटो रिक्शा चलाकर जो कमाई हुई, उससे बेटी के लिए सात हजार रुपये प्रति माह से आटो रिक्शा की व्यवस्था की।
पिता का इतना साथ और खुद पर यकीन उनको बहुत रास आ रहा था। ऐसा हुआ भी विंका ने पिता की मेहनत जाया नहीं की। मोंटेनेग्रो के बुडवा शहर में 30वें एड्रियाटिक पर्ल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में 57 से 60 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। विंका ने ये पदक अपने पिता को समर्पित किया है। इस जीत पर घर में पिता धर्मेंद्र और मां सरला देवी ने मिठाई बांटकर खुशी जताई। विंका ने हाकी को छोड़कर बॉक्सिंग खेल शुरू किया था।
संघर्ष करना तो हर किसी की किस्मत में कहीं न कहीं लिखा होता है। इस संघर्ष से जो लड़ गया वही तर जाता है। विंका के पिता धर्मेंद्र ने बताया कि विंका की लंबाई 5 फीट 6 इंच की है। पहले 60 से 64 किलोग्राम भार वजन में खेलती थी। उम्र बढ़ गई है। उसकी आयु की कई बॉक्सरों की लंबाई ज्यादा थी। इससे विंका को विरोधी बॉक्सरों को पंच मारने में दिक्कत होती थी। इसी वजह से विंका ने चार किलो वजन घटाया।
उनकी सफलता की कहानी आज हर किसी की ज़ुबान पर है। कई युवतियां इनसे प्रेरणा ले रही हैं। विंका ने देश का नाम रोशन किया है। विंका का खेल हर दिन बेहतर होता जा रहा है।