अगर किसी चीज़ में कभी – कभी कुछ बदलाव किये जाएं तो यह हमें बहुत फायदा देता है। फरैण कलां गांव के अजमेर बागवानी व सब्जियों की खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं। पहले उनका परिवार पारंपरिक तरीके से खेती करता था। जिससे परिवार का गुजारा भी मुश्किल से होता था। अजमेर के पिता किताब सिंह के पास पांच एकड़ जमीन है। अजमेर का एक भाई और दो बहनें हैं।
देशभर में अब यह सोच समाप्त होने लगी है कि खेती – बाड़ी बस नुकसान का सौदा है। यह एक पॉजिटिव बात है। उन्होंने खेती में ज्यादा बचत ना होते देख 12वीं पास अजमेर साल 2008 में निजी कंपनी में जॉब करने लगा। फिर किसी ने खेत में बाग लगाने की सलाह दी।
वर्तमान में अनेकों युवा खेती की तरफ अपना रुझान दिखा रहे हैं। आज अनेकों लोग खेती कर अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं। उन्होंने साल 2015 में नौकरी छोड़ कर चार एकड़ में बाग लगाया, जिसमें अमरूद किन्नू, नींबू व आडू के पौधे लगाए। इस पर करीब साढ़े पांच लाख रुपये खर्च आया। जिसमें चार लाख रुपये अनुदान सरकार से मिला। ढाई साल में ही बाग में अमरूद लगने लगे और आमदनी शुरू हो गई। अजमेर ने बाग को ठेके पर दिया हुआ है।
खेती करना इतना आसान नहीं है लेकिन फिर भी आज अनेकों लोग इसी क्षेत्र में अपनी किस्मत को आजमा रहे हैं। हर साल चार एकड़ बाग से चार लाख रुपये मिलते हैं। वहीं बाग के अंदर गेहूं व हरा चारा भी उगाता है। जिससे अतिरिक्त बचत होती है और घर के खर्चे निकल जाते हैं। बागवानी के साथ-साथ अजमेर ने सब्जी उगाना भी शुरू कर दिया है। इसके लिए एक एकड़ जमीन में नेट हाउस लगाया है। जिसमें खीरा लगाने की तैयारी है।
जब मन कुछ और करना चाहता है तो उसी की तरफ आपका दिमाग भी दौड़ता है। अजमेर बताते हैं कि पारंपरिक खेती में परिवार मेहनत करके भी खेत से साल भर में 40 हजार रुपये भी प्रति एकड़ नहीं बचा पाता था। जो बचत होती, वो साथ-साथ अगली फसल की बिजाई में खर्च हो जाती। जोखिम भी ज्यादा रहता। कभी बारिश कम हुई, तो कभी ज्यादा। जिससे फसल के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता। पारंपरिक खेती की तुलना में बाग में मेहनत कम है और बचत ढाई गुना ज्यादा।