किसी चीज को शिद्दत से चाहो, तो पूरी कायनाथ तुम्हें उससे मिलना की साजिश रचती है। यह एकदम सटीक बात है। मुंबई फिल्म उद्योग को आकार देने वाली किसी एक बुनियादी चीज पर इतिहासकारों की सहमति है, तो वह है इसकी सघन अनिश्चितता। अब व्यावसायिक रूप से सफल और वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त बॉलीवुड ने अपना पहला कदम तब उठाया था, जब भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था।
बॉलीवुड में बहुत से दिग्गज आज ऐसे हैं जिन्होनें अपने संघर्ष से आज बॉलीवुड को अलग पहचान दी है। 1930 के दशक में बॉम्बे गतिशील फिल्म उद्योग का केंद्र बन गया। यहां की सिने-पारिस्थितिकी की जड़ें विभिन्न दिशाओं में फैली हुई थी। दूसरे विश्वयुद्ध के दौर में इस फिल्म उद्योग ने चालीस हजार लोगों को रोजगार दिया। और ऐसे ही दौर में एक नया ऐतिसाहिक शख्स दृश्य में आया और वह था, ‘स्ट्रगलर’।
शाहरुख खान, अक्षय कुमार, वाजुद्दीन सिद्दिकी, रणवीर सिंह, और भी बड़े बड़े नाम है जो “स्ट्रगलर” थे लेकिन आज बॉलीवुड पर राज कर रहे हैं। स्ट्रगलर शब्द मुंबई के संदर्भ में इतना खास है कि यहां की शहरी बोली का हिस्सा बन गया जिसे ‘बंबइया’ कहते हैं। मुंबई में स्ट्रगल का मतलब है फिल्मों में मायावी ‘बड़ा ब्रेक’ हासिल करने के लिए धक्के खाना। स्ट्रगलर विशिष्ट किस्म का सामाजिक शख्स होता है, जो फिल्म कारोबार में बड़ा नाम कमाना चाहता है और जिसका वहां कोई बड़ा संपर्क नहीं होता।
छोटे शहरों से बॉलिवुड पहुंचे प्रतिभावान लोगों के लिए कामयाबी का रास्ता बेहद लंबा और पेचीदा होता है। बेशक एक साधारण सी फैमिली से आने वाले शाहरुख के लिए एक्टर बनने का सपना एक शिद्दत से चाही हुई चीज थी जिसे कायनाथ ने कुबूल किया और शाहरुख को स्टार नहीं बल्कि सुपरस्टार बना दिया। लेकिन सिर्फ शाहरुख ही नहीं, बात अगर एक्टिंग से शिद्दत वाले प्यार की करें तो अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र भी इस फेहरिस्त में जुड़े हुए हैं।
सुशांत सिंह राजपूत जो अब हमारे बीच में नहीं हैं, इन्होनें भी काफी संघर्ष किया था बॉलीवुड में आने के लिए। मौनी रॉय, शाहिद कपूर, दिया मिर्ज़ा, काजल अग्रवाल। इन्होनें भी कड़ी मेहनत और संघर्ष किया है।