एक पत्नी के लिए उसका देवता भगवान के बराबर होता है। पति – पत्नी का रिश्ता ईश्वर बनाकर भेजता है। हमारे देश में न जाने कितनी महिलाएं हैं जो अपने पति की सलामती के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती हैं। करवा चौथ के व्रत से लेकर वट सावित्री में बरगद की पूजा करने तक, भारतीय महिलाएं पति की हर मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करती हैं। यही नहीं बड़ी से बड़ी बाधाओं को नगण्य मानकर औरतें पति की ख़ुशी के लिए ही प्रयासरत रहती हैं।
लता, महाराष्ट्र के बारामती ज़िले के एक गांव में रहती हैं। लेकिन उनकी पहचान पूरी दुनिया में हो गयी है। उन्होंने 68 साल की उम्र में जिसमें आमतौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, उस उम्र में अपने पति को बीमारी से बाहर निकालने के लिए मैराथन की दौड़ में हिस्सा लिया और प्रथम पुरस्कार जीतकर पूरी दुनिया के सामने मिसाल प्रस्तुत की।
सिर्फ युवा वर्ग ही नहीं बल्कि सभी उम्र के लोगों के लिए लता भगवान करे प्रेरणा बन गयी हैं। लता के पति काफी बीमार हो गए थे। उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे। पैसे पाने के लिए ही लता ने मैराथन में हिस्सा लिया था। उनकी उम्र 68 साल है और वो मैराथन रनर के नाम से जानी जाती हैं। साल 2014 तक कोई उनका नाम भी नहीं जानता था, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने मैराथन रेस में हिस्सा लिया, जीत हासिल की और हर कोई उन्हें जानने लगा।
उनकी इस हिम्मत के आगे हर कोई सर झुकाता है। सभी को इनसे प्रेरणा मिलती है। यही नहीं उनके नाम पर मराठी फिल्म भी बनी जो सभी को प्रेरणा देती है। जिस उम्र में आमतौर पर महिलाएं पोते पोतियों को खिलाती और आराम करती हैं उस उम्र में लता ने मैराथन की लम्बी दौड़ में हिस्सा लिया और प्रथम पुरस्कार भी जीता। जी हां ये सच है, लेकिन मैराथन में हिस्सा लेना लता का शौक नहीं बल्कि जरूरत थी।
अपने पति के लिए प्यार और खुद पर भरोसा रखकर लता ने अपना नाम अमर कर दिया। लता और उनके पति भगवान तो बुलधाना जिले के हैं, लेकिन काम के सिलसिले में महाराष्ट्र के बारामती में रहने लगे।