यूपीएससी में सफल कैंडिडेट्स की कहानियां अक्सर आपने सुनी होंगी। सफलता की कहानियां लोगों को जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने वाले कैंडिडेट को काफी संघर्ष करना पड़ता है। ऐसा ही संघर्ष हरीश चंद्र को करना पड़ा। हरीश चंद्र दिल्ली अट्रोल लेन बस्तियों में रहने वाले हरीश को बचपन में काफी संघर्ष करना पड़ा। कभी वह पानी भरने के लिए कड़ी धूप में लाइन में खड़े होते। तो कभी दुकान पर काम करते। लेकिन हरीश ने अपने फोकस को नहीं छोड़ा।
कई युवा इनसे प्रेरणा ले रहे हैं। इनके संघर्ष की कहानी लाखों लोगों के लिए प्रेरणादायक है। हरीश के पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे। वह रिक्शा चलाकर अपने घर का गुजारा करते थे। उनकी मां दूसरे के घरों में जाकर काम करती थी। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि हरीश किस स्थिति में अपना जीवन व्यतीत कर रहे होंगे। मां दूसरों के घर में काम करके जो पैसे कमाती थी वह हरीश को पढ़ानें में खर्च कर देती।
हरीश घर का खर्च निकालने के लिए दूसरों के घरों में भी काम करने लगे। ताकि परिवार को सहारा दे सके। लगन से की गई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। इसका उदाहरण हैं हरीश। हरीश गोबिंद जयसवाल से भी अधिक प्रभावित हुए। साल 2007 में गोबिंद आईएएस बने थे। गोबिंद के पिता रिक्शा चलाते थे। हरीश को लगा कि जब गोबिंद आईएएस बन सकते है तो वह क्यो सिविल सर्विस परीक्षा पास नहीं कर सकते। हिंदू कालेज से बीए करने के बाद उन्होंने दोस्तों सें आईएएस के बारे में जानकारी मिली थी।
चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए। हमेशा डटकर इससे लड़ते रहना चाहिए। हरीश अपने पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे। विषय चयन के दौरान पंतजलि के शिक्षक धर्मेंद्र सर ने मेरा मार्गदर्शन कि या। उनका दर्शनशास्त्र समझाने का ऐसा तरीका था कि समझाने पर ही सब क्लियर हो जाता था। हरीश ने पहले ही प्रयास में आईएएस क्लियर कर लिया। उनकी 309वी रैंक थी।
इनकी मेहनत आज कई युवाओं को प्रेरणा दे रही है। यूपीएससी परीक्षा पास करने के लिये सभी दम लगाकर मेहनत करते हैं।बिना मेहनत के इसमें कुछ हासिल नहीं होता है।