इंसान की ज़िंदगी जिम्मेदारियों से भरी होती है। अपनों को अच्छी ज़िंदगी देने के लिए लोग दिन-रात एक कर देते हैं। लाल चुनरी ओढ़ जिस देहरी से 40 साल पहले निकली थीं, नियति ने एक साल बाद ही ‘सफेद धोती’ मेंं उसी देहरी पर लौटने को मजबूर कर दिया। महज चार बीघा जमीन के मालिक बुजुर्ग पिता का खेतीबाड़ी में हाथ बंटाकर चार बहनों और भाई की शादी कर दी। करीब 24 साल पहले पिता और फिर मां की मौत ने झकझोर दिया। मगर हिम्मत नहीं हारी।
ईश्वर कभी – कभी इतना बेरहम हो जाता है कि कोई यकीन भी नहीं कर पता की ऐसा हुआ होगा। इन्होंने हार नहीं मानी और, भैंस पालकर गांव में दूध बेचने लगीं। फिर और भैंस खरीदीं। गांव से पांच किमी दूर अमांपुर कस्बा में साइकिल से जाकर घर-घर दूध बेचने लगीं। 62 साल की ‘शीला बुआ’ आज भी साइकिल से ही दूध बेचने जाती हैं।
मुसीबत इंसान को हर कार्य करने के लिए मजबूर कर देती है। कासगंज में शीला बुआ एक ऐसा नाम है जो बुलंद इरादों का पर्याय नजर आता है। जिंदगी की तमाम भंवर को पार करने वाली शीला देवी के पारिवारिक जिम्मेदारी, सूझबूझ और मेहनत के इस ‘संगम’ में तारीफों की लहरें उठती हैं। गांव खेड़ा निवासी रामप्रसाद की पांच बेटियों में सबसे बड़ी शीला की शादी वर्ष 1980 में अवागढ़ के रामप्रकाश के साथ हुई थी।
ज़िंदगी में न चाहते हुए भी मनुष्य को वो सब करना पड़ता है जो मजबूरी उससे कराती है। शीला सुहागन होने की पहली सालगिरह बाद ही विधवा हो गईं। हालात कुछ ऐसे बने कि मायके आ गईं। दोबारा शादी की तैयारियां हो रही थीं, मगर इसी दौरान बड़े भाई कैलाश की बीमारी से मौत हो गई। आहत शीला ने अपने बारे में सोचना ही बंद कर दिया। पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटाने लगीं। चार बहनों और छोटे भाई विनोद की शादी हो गई।
आज यह महिला बिना रुके और बिन थके अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर रही हैं। परिवार की विपरीत परिस्थितियों को मात देकर आत्मनिर्भर बन उन्होंने मिसाल कायम की। खेड़ा निवासी शीला 62 वर्ष की उम्र में साइकिल से घर-घर लोगों को दूध पहुंचाती हैं।