भारत में आधी से ज़्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है। खेती – बाड़ी में हर कोई मुनाफा कमाना चाहता है। पिछले कुछ सालों से मुनाफा किसान कमाने भी लगे हैं। एक किसान अपने पौने दो एकड़ नीबू के बगीचे की लागत से परेशान था, सिर्फ इनकी लागत ही लाखों रुपए में पहुंच जाती थी। अभिषेक जैन ने इस बढ़ी लागत को कम करने के लिए बाजार से रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाएं लेनी बंद कर दी।
एक आईडिया इंसान की जिंदगी को कभी भी पलट सकता है। बस उस आईडिया पर काम करने की ज़रूरत होती है। गत 3 वर्षों से जैविक तरीका अपनाने से इनकी हजारों रुपए की लागत कम हो गयी है। लागत कम होने से ये नीबू के बगीचे से बाजार भाव के हिसाब से सालाना पांच से छह लाख रुपए बचा लेते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि किसान परंपरागत खेती को छोड़कर कुछ नया ट्राई कर रहे हैं। यह किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रहा है। राजस्थान के अभिषेक जैन बीकॉम करने के बाद मार्बल के बिजनेस से जुड़ गये। अभिषेक बताते हैं, पिता के देहांत के बाद बिजनेस छोड़कर पुश्तैनी जमीन को सम्भालना पड़ा। खेती करने के दो तीन साल बाद मैंने ये अनुभव किया कि एक तिहाई खर्चा सिर्फ खाद और दवाइयों में निकल जाता है। इस बढ़ती लागत को कम करने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया था।
इस आईडिया पर काम करते हुए उन्होंने सकारात्मकता नहीं छोड़ी। लगातार प्रयासरत रहे। लागत कम करने के लिए उन्हें तीन साल पहले साकेत ग्रुप के बारे में पता चला, जो जैविक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण देता है। इस ग्रुप से जुड़ने के बाद पूरी तरह से नीबू के बगीचे को जैविक ढंग से कर रहे हैं, इससे जो लागत पहले 33 प्रतिशत आती थी अब वो 10 प्रतिशत पर आ गयी है।
खेती-बाड़ी में पिछले कुछ सालों के अंदर अनेकों बदलाव आये हैं। किसान नए – नए तरीकों से और फसलों से खेती में अपना भविष्य बना रहे हैं। अभिषेक को खेती करने का पहले कोई अनुभव नहीं था। इनकी कुल छह एकड़ सिंचित जमीन है, पौने दो एकड़ जमीन में नीबू की बागवानी और लगभग तीन एकड़ में अमरुद की बागवानी इनके पिता पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं।