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विदेश में इस खिलाड़ी ने बजाया डंका, सफर के पैसे नहीं थे उधार मांगकर गया था, वापस आया इतिहास रचकर

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पैसों की कमी से अक्सर नई – नई प्रतिभाएं पीछे रह जाती हैं। उन्हें समाज के सामने आने का मौका नहीं मिल पाता। लेकिन यूपी के टूंडला जैसे कस्बे में भी खेल प्रतिभाएं अपना हुनर दिखा रही हैं। खेल के लिए सरकार ने भले ही लंबा-चौड़ा बजट दिया हो, लेकिन खेल प्रतिभाएं धन के अभाव में खेल नहीं पाती। भूटान में अपनी कप्तानी में टीम को गोल्ड दिलाने वाले सुमित के पास उस प्रतियोगिता में जाने-आने का खर्च उठाने के लिए भी पैसे नहीं थे।

पैसे नहीं थे लेकिन जुनून और हौसला दिल में हर समय बढ़ रहा था। सुमित पौनियां एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता गोपाल पौनियां इलैक्ट्रीशियन हैं, लेकिन सुमित की रुचि शुरू से खेल में रही। बालीबाल के शौकीन सुमित के समक्ष आर्थिक तंगी की समस्या भी थी।

विदेश में इस खिलाड़ी ने बजाया डंका, सफर के पैसे नहीं थे उधार मांगकर गया था, वापस आया इतिहास रचकर

सुमित के हौसलों ने उसे सफलता तक पंहुचा दिया। प्राइवेट एकेडमी में प्रशिक्षण एवं खेलने के लिए पैसे की जरूरत होती थी, ऐसे में सुमित ने कक्षा 11 से ही अपना जेब खर्च जोड़ना शुरू कर दिया। इनका खेलों के प्रति झुकाव को देखते हुए ठा.बीरी सिंह इंटर कालेज के प्रबंधक सुरेंद्र सिंह नौहवार और समाजसेवियों ने कई बार मदद की।

विदेश में इस खिलाड़ी ने बजाया डंका, सफर के पैसे नहीं थे उधार मांगकर गया था, वापस आया इतिहास रचकर

कुछ करने का जब सच्चा हौसला होता है तो ईश्वर भी मदद को तैयार रहता है। लोगों के सहयोग से उन्होंने 2019 में आइसीएसई की नेशनल चैंपियनशिप जयपुर में प्रतिभाग किया। यहां पर इनके प्रदर्शन के आधार पर आइसीएसई की भूटान में होने वाली इंडो भूटान चैंपियनशिप के लिए बालीबाल टीम का कप्तान चुना गया। भूटान में हुई चैंपियनशिप में टीम जीती तथा सुमित को गोल्ड मैडल मिला।

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बुरे समय में हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। हर समय हमें सकारात्मकता का परिचय देना चाहिए। सुमित ने अपनी टीम में जोश भरा और उसका फल भी जीत के रूप में मिला।

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