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मैरीकॉम : संघर्ष की मिसाल, खेतों में काम करते हुए गुजारा था बचपन अपने संघर्ष से लिख दी सफलता की कहानी

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महिलाएं सबकुछ कर सकती हैं। महिलाओं को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। मेहनत और लगन के साथ क्या हासिल नहीं किया जा सकता है। इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं मैरीकॉम। संघर्ष की आग में जब कोई तपता है तभी वो सोना कुंदन बनता है। संघर्ष से ही इंसान मजबूत बनता है। इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो यह मानते हैं कि लड़कियों का काम केवल घर संभालना है वो कोई खिलाड़ी नही बन सकती।

मैरीकॉम एक ऐसा नाम जिसे दुनिया का बच्चा बच्चा जानता है। कई लोगों के लिए मैरीकॉम प्रेरणा हैं। इन्होनें ना केवल अपने घर को बखूबी संभाला बल्कि बॉक्सिंग की दुनिया में अपनी गहरी छाप छोड़ी है।

मैरीकॉम : संघर्ष की मिसाल, खेतों में काम करते हुए गुजारा था बचपन अपने संघर्ष से लिख दी सफलता की कहानी

उन्होंने कड़ी मेहनत से अपनी किस्मत को बदल दिया है। वह एक गरीब परिवार की लड़की है उनका जीवन गरीबी में गुजरा है मणिपुर की इस लड़की ने अपना बचपन खेतों में काम करते हुए बिताया है। मेरी कॉम का पूरा नाम मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम है। 10 बार राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने वाली मेरीकॉम का पूरा नाम मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम है। मैरीकॉम का जन्म मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में 1 मार्च 1983 को हुआ था।

मैरीकॉम : संघर्ष की मिसाल, खेतों में काम करते हुए गुजारा था बचपन अपने संघर्ष से लिख दी सफलता की कहानी

मैरीकॉम का परिवार बहुत गरीब था। उनके पिता एक गरीब किसान थे। खेल में हिस्सा लेना उनके पिता को मंजूर नहीं था लेकिन 2005 में ऑनलाइन कॉम ओनलर कॉम से शादी के बाद मेरी ने खेल जगत में कदम रखा। पति के सपोर्ट से उन्होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेना प्रारंभ कर दिया और बॉक्सिंग इस कदर उनका जुनून था कि देश के लिए वह कई मेडल ले आई।

मैरीकॉम : संघर्ष की मिसाल, खेतों में काम करते हुए गुजारा था बचपन अपने संघर्ष से लिख दी सफलता की कहानी

मैरी ने 2007 में जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। मैरीकॉम को बचपन से ही खेलने-कूदने का शौक था। उनके ही गांव के मुक्केबाज डिंग्को सिंह की सफलता ने उन्हें मुक्केबाज़ बनने के लिए और प्रोत्साहित कर दिया।

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