किसान यूनियन के प्रमुख गुरनाम चढूनी द्वारा मिशन पंजाब की बात कही जाने पर जैसे ही उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा निलंबित किए जाने की बातें तेज हुई तो खा प्रतिनिधि से कर आंदोलन से जुडी सभी नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें सांस देखी जाने लगी।
हालांकि इसके पीछे कारण अलग-अलग हैं। पहला तो ये कि चढूनी पर कार्रवाई को पक्षपात बताया जा रहा है। इसमें तर्क दिया जा रहा है कि इसी तरह की महत्वाकांक्षा जाहिर करने और आंदोलन की आड़ में खुद को प्रोजेक्ट करने का आरोप योगेंद्र यादव पर भी लग चुका है, मगर उन पर कार्रवाई नही हुई। सवाल है कि अकेले चढूनी को निशाना क्यों बनाया गया। दूसरा, कारण यह है कि चढूनी ने जो मिशन पंजाब की बात कही है, उसका समर्थन भी हो रहा है।
इस मसले को लेकर टीकरी बार्डर पर शुरूआत से आंदोलन का हिस्सा बने न्यूनतम समर्थन मूल्य संघर्ष समिति के अध्यक्ष प्रदीप धनखड़ का कहना है कि यह सही है कि आंदोलन का किसी भी तरह से राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। यह कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है। किसानों का आंदोलन है, जिसका राजनीति से काेई लेना-देना नहीं है और न ही किसी को इसका राजनीतिक फायदा उठाने की तनिक भी छूट दी जा सकती है।
मगर असल मुद्दा यह भी है कि अगर आंदोलन से जुड़ा कोई भी नेता यदि आंदोलन के राजनीतिक इस्तेमाल की सोचता है तो फिर कार्रवाई में भी कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए। नियम सभी पर लागू हो। आज गुरनाम चढूनी का जो कसूर बताया जा रहा है, वहीं कसूर योगेंद्र यादव भी कर चुके हैं।
पिछली मीटिंग में उनके निलंबन का फैसला भी हुआ था, मगर उस पर अमल नहीं किया गया। फिर गुरनाम चढूनी के साथ ऐसा क्यों हुआ। प्रदीप धनखड़ का कहना है कि आंदोलन में एक तरह से हरियाणा के किसान संगठनों का गला घोंटने की कोशिश की जा रही है। उधर, गठवाला खाप के राष्ट्रीय महासचिव अशोक मलिक का कहना है कि गुरनाम चढूनी की मिशन पंजाब की बात सही है।
जब उप्र और अन्य राज्यों में इस तरह के मिशन हैं तो फिर पंजाब में क्यों नहीं। आखिर किसान-मजदूर समेत कमेरा वर्ग आगे आएगा और उसे देश में शासन का मौका मिलेगा, तभी ताे वह सही नीतियों का निर्माण कर सकता है। फिलहाल विधानसभा और आगे लोकसभा का भी मिशन तय करना जरूरी है। संयुक्त किसान मोर्चा को अपने उम्मीदवार खड़े करने चाहिए। गुरनाम चढूनी को निलंबित किया जाना पंजाब के जत्थेदारों की छोटी सोच का परिचायक है