कृषि कानूनों पर ‘मंत्री’ ने नहीं दिया असंतोषजनक जवाब, ‘किसान संसद’ में कर दी इस्तीफे की घोषणा

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22 जुलाई को किसानों एक संसद जंतर मंतर पर संसद लगाने के लिए पहुंच गया यानी कि एक संसद देश की चल रहे थे और एक चल रही थी ‘किसानों की ‘आपको बता दें कि तीनों के कृषि कानूनों के विरोध में जंतर मंतर पर किसान संसद चल रही थी जिसमें शुक्रवार को आम सहमति से एक प्रस्ताव पारित किया गया पीएमसी अधिनियम को रद्द करने के लिए मांग की गई

एक नाटकीय अंदाज में जंतर मंतर के बाहर एक किसान संसद का आयोजन किया गया जिसमें संसद की कार्यवाही पूरी तरह से संसद की तरह ही की गई इसमें मानसून सत्र चल रहा था किसान संसद के दूसरे दिन संयुक्त किसान मोर्चा ने एक स्पीकर एक डिप्टी स्पीकर और एक कृषि मंत्री भी नियुक्त किया इस किसान संसद में कृषि मंत्री रवनीत सिंह ने अपनी गलती मानते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की क्योंकि वह किसानों के मुद्दों को हल करने में असफल साबित रहे और उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए

कृषि कानूनों पर 'मंत्री' ने नहीं दिया असंतोषजनक जवाब, 'किसान संसद' में कर दी इस्तीफे की घोषणा

किसान संसद में एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें बोला गया कि किसानों को कहीं अधिक संख्या में संचालित होने वाली मंडियों की जरूरत है ना की कम संख्या में प्रस्ताव में केंद्रीय अधिनियम को फौरन रद्द करने की मांग करते हुए यह दावा भी किया गया कि संविधान की अनदेखी करी गई है प्रस्ताव में सरकार से मंडी प्रणाली को सुधारने की भी मांग की गई ताकि किसानों के हितों की रक्षा की जा सके

संसद की तरह लगी किसानों की संसद

किसान संसद की कारवाही हूबहू संसद की संस्कृत की तरह ही की गई इस संसद में भी 1 घंटे का प्रश्नकाल रखा गया जिसमें कृषि मंत्रों पर सवालों की झड़ी लगाई गई जिन्होंने केंद्र के नए कृषि कानून का बचाव करने के लिए अपनी पूरी कोशिश की गई मंत्री ने संसद को बताया कि कैसे वैश्विक महामारी के कारण किसानों को उनके घरों को लौटने उनसे टीका लगवाने का भी अनुरोध किया गया था

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हर बार जब मंत्री संतोषजनक जवाब देने में असफल रहते सदन के सदस्य उनको शर्मिंदा करते हैं अपने हाथ उठाते और उनके जवाबों पर अपना विरोध जाहिर करते वाजवा के बाद मीडिया से कहा गया कि कृषि मंत्री सवालों के जवाब देने में रहना काम जिसके चलते संसद के सदस्यों ने मंत्री को शर्मिंदा किया जिससे बाधा हुई

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उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री ने स्वयं स्थिति पर जोर दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य था वह वर्तमान में भी है और आगे भी रहेगा तो फिर इसे कानून बनाने में क्या समस्या है यदि यह तीनों कानून किसानों के हित के लिए बनाए गए हैं तो एक बार फिर विचार-विमर्श करके दोबारा क्यों नहीं बनाए जाते