फरीदाबाद- 26 जुलाई भारतवासियों के लिए एक गौरव का दिन हैं, इस दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाकर कारगिल पर विजय हासिल की थी। साल 1999 में हुआ कारगिल युद्ध 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को भारत की विजय के साथ इसका अंत हुआ था।
प्रत्येक वर्ष भारत की विजय और युद्ध में शहिद हुए सेनानियों की याद में 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता हैं। आज कारगिल विजय दिवस के अवसर पर शहिद हुए मोहना गांव के फौजी वीरेंदर सिंह की शहादत को याद करते हम शहर वासियों की आंखे नम और छाती गर्व से चौड़ी हो जाती हैं।
21 वर्ष की उम्र में देश के के लिए उनका बलिदान हम सब युवाओं के लिए हमेशा ही एक प्रेणा का स्त्रोत रहेगा। वीरेंदर सिंह की बहादुरी और वीरेंदर सिंह के बारे में बताते हुए उनके बड़े भाई डॉ हरप्रसाद अत्री ने बताया की वीरेंदर ने अक्टूबर 1998 में फौजी भर्ती हो गए थे।
उन्हें जाट रेजिमेंट मिली थी। उनके प्रक्षिक्षण के 6 माह पूरे हुए ही थे कि कारगिल युद्ध छिड़ गया। उनकी तैनाती मश्कोह घाटी में हुई थी। बटालियन को आदेश मिलने पर 17 जाट बटालियन के 25 जवानों की टुकड़ी ने 5 जुलाई की रात पिलर नंबर 2 पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू कर दी।
पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सैनिक व घुसपैठियों ने भारतीय जवानों को आता देख फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान एक गोली वीरेंद्र सिंह के पैर में लगी। गोली लगने के बाद भी वीरेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी। 6 जुलाई को तड़के करीब 4.45 बजे भारतीय जवानों और पाकिस्तानी सेना के बीच जमकर गोलीबारी हुई।
वीरेंद्र ने कई पाकिस्तानी सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। चोटी पर विजय करने के बाद जब उनके साथी गोली निकालने का प्रयास कर रहे थे तभी उनके पास एक गोला आकर गिरा, जिसकी चपेट में आकर वीरेंद्र शहीद हो गए।
मोहना गांव में 1 जनवरी 1978 को कारेलाल और केलादेवी के घर में वीरेंदर सिंह का जन्म हुआ था। वह अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे। हर वर्ष उनकी याद में 11 जुलाई को उनका विदाई दिवस मनाया जाता हैं।
वीरेंदर को कबड्डी का बहुत शौक था इसलिए उनके जन्मदिन पर हर साल कबड्डी की प्रतियोगिता का आयोजन कराया जाता हैं, जिसमें सेना के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश व पंजाब की टीमें भी हिस्सा लेती हैं।