मजबूरी कुछ भी करवाने को बाधित कर देती है। इंसान हमेशा ही समस्याओं के जाल में बिछा रहता है। जब वक्त की मार इंसान पर पड़ती है तो उसमें आवाज नहीं होती है लेकिन मार झेलने वाले को दर्द बहुत होता है। आधी आबादी ने हर मोड़ पर समाज के मिथक और दकियानूसी बंदिशों को तोड़ा है। सीतामढ़ी की सुखचैन देवी उनमें से एक हैं। सामाजिक तानों को दरकिनार कर वे पुरुषों के दाढ़ी-बाल बनाती हैं। इससे होने वाली कमाई से घर का खर्च चलाने के साथ बूढ़ी मां की देखभाल कर रहीं।
आज के समाज में गरीबी एक अभिशाप बन चुकी है। मेहनत के ज़रिये गरीबी से पार पाया जा सकता है। 35 वर्षीय सुखचैन देवी की शादी 16 वर्ष पहले प्रखंड के पटदौरा गांव में हुई। ससुराल में कोई जमीन नहीं होने और पिता की मौत के बाद दो बेटों और एक बेटी के साथ मां की जिम्मेदारी भी उनके सिर आ गई।
इस दुनिया की आज यही सच्चाई है कि कोई गरीब इंसान अपनी गरीबी के कारण परेशान है तो समाज में लोग उसे कमजोर समझने लगते हैं। ऐसे में गरीब और असहाय लोग किसी भी काम को करने के लिए तैयार हो जाते हैं। उनको किसी के तानों की कोई परवाह नहीं रह जाती है। इनके पति रमेश ठाकुर चंडीगढ़ में बिजली मिस्त्री का काम करते हैं, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल है। इस पर दो साल पहले उन्होंने पुश्तैनी काम करने की ठानी।
कई लोगों की सोच आज इन्होनें बदल के रख दी है। हर कोई इनसे प्रेरणा ले रहा है। पुरुष वर्ग के दबदबे वाले नाई का कार्य आसान नहीं था। शुरुआत में लोग बाल-दाढ़ी बनवाने से हिचकते थे, लेकिन वह मायके में ही रहती हैं, इसलिए लोग बेटी और बहन मानकर बनवाने लगे। अब न ग्रामीणों और न ही सुखचैन देवी में इस काम को लेकर कोई झिझक है।
इस दुनिया में कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। सभी काम एक समान होते हैं। अब वे रोज सुबह कंघा, कैंची, उस्तरा लेकर गांव में निकल जाती हैं। घूम-घूमकर लोगों की हजामत बनाती हैं। बुलावे पर घर भी जाती हैं। इससे प्रतिदिन 200 से 250 रुपये कमा लेती हैं।