कामयाबी कभी भी 1 दिन में किसी को नहीं मिलती हैं उसके लिए सालो साल कठिन परिश्रम और मेहनत करनी पड़ती हैं। कामयाबी सबको अच्छी लगती हैं, लेकिन उसके लिए मेहनत हर कोई नहीं करता हैं और जो मेहनत करता हैं वो ही जिंदगी में सफल हो जाता हैं। आज हम बात करने जा रहे एक ऐसे ही शक्श की कामयाबी की जिसने सिर्फ अपने माँ बाप का ही नहीं पुरे देश का नाम रोशन किया हैं।
आपको बता दे की हम बात कर रह हैं नीरज चोपड़ा की , जिन्हों ओलंपिक्स में गोल्ड जीत कर अपना ही नहीं बल्कि पुरे देश का नाम ऊँचा किया हैं। नीरज ने गोल्ड जीतकर इतिहास ही रच दिया हैं लेकिन इतिहास यूँ ही नहीं रचा जाता , इसके पीछे उनकी जिद, धैर्य और आत्मविश्वास की एक लंबी कहानी है। इस कहानी की शुरुआत उनके खुद के साथ किए गए समझौतों से होती है।
नीरज बचपन में खाने के शौकीन थे,13 साल की उम्र में ही उनका वजन 80 किलो तक पहुंच गया था। जिसकी वजह से लोग उनका मजाक उड़ाते थे, तब नीरज के चाचा ने उन्हें दौड़ने के लिए ले जाना शुरु किया और इसी दौरान नीरज को कुछ ऐसे साथी मिले जो जेवेलीन थ्रो किया करते थे। नीरज ने भी उसमें अपना हाथ आजमाया। पहली बार में ही नीरज का प्रदर्शन अच्छा रहा और उन्हें इसमें मज़ा आना लगा।
शुरुआती समय में नीरज के घर की आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं थी जिसकी वजह से उनके पास अच्छी क्वालिटी के जेवेलीन खरदीने के पैसे नहीं हुआ करते थे, लेकिन फिर भी उनकी प्रैक्टिस में कोई कमी नहीं आई। नीरज के दोस्तों का कहना हैं की अक्सर वह सुबह-सुबह उठकर प्रैक्टिस पर चलने के लिये जगाया करते थे लेकिन हमारे मना करने पर वह अकेले ही प्रैक्टिस के लिये चले जाते थे।
वहीं नीरज की इस कामयाबी के लंबे सफर को याद करते हुए उनकी मां भी भावुक हो गई,उन्होंने कहा की बेटे का घर से दूर रहना खलता था मगर वो सारे समझौते आज सफल साबित हुए। जेवेलीन की ट्रेनिंग लेने के लिए नीरज को 10 साल घर से दूर रहना पड़ा था। इस दौरान वे साल में केवल एक बार अपने परिवार से मिलने आ पाते थे।
नीरज अपनी प्रैक्टिस को लेकर इतने गम्भीर थे कि वे किसी भी पारिवारिक कार्यक्रम, शादी समारोह या पार्टी में शामिल नहीं हुआ करते थे। नीरज की बहन संगीता बताती हैं कि उन्हें मीठा खाना बहुत पसंद था लेकिन जेवेलीन के लिये उन्होंने मीठा खाना भी छोड़ दिया।
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