ओलंपिक में भारतीय महिलाओं ने किया शक्ति प्रदर्शन, लगाई जीत की हैट्रिक

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रविवार को रंगबिरंगी रोशनी के साथ खेलों के सबसे बड़े कार्यक्रम का टोक्यो में समापन हो गया। खेलों की शुरुआत चांदी की चमक से करने वाले भारतीय खिलाड़ियों ने इसका अंत स्वर्णिम आभा के साथ किया। भारतीय खिलाड़ियों ने पहली बार सात पदक जीतकर इन खेलों को यादगार बना दिया।

पहले दिन ही मीराबाई ने चांदी से देश को चमका दिया तो वहीं खेल समापन से एक दिन पहले नीरज चोपड़ा के सोने से पूरा भारत जगमगा उठा। बेटियों ने ओलंपिक खेलों की अपनी 69वीं सालगिरह को यादगार बना डाला।

ओलंपिक में भारतीय महिलाओं ने किया शक्ति प्रदर्शन, लगाई जीत की हैट्रिक

पहली बार किसी ओलंपिक में बेटियों ने पदक की हैट्रिक लगाई। कुछ ने अपने खेल से भविष्य की नई उम्मीद जगाई। 1952 हेलसिंकी में पहली बार भारतीय महिलाओं ने भाग लिया था और यह खेल भी जुलाई-अगस्त में ही हुए थे। 

मीरा के खेल ने जोड़ा नया अध्याय

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पहले ही दिन रजत पदक जीतकर मीराबाई चानू (49 किग्रा) ने भारतीय खेलों में एक नया अध्याय जोड़ा। ओलंपिक के पहले ही दिन भारत ने पहली बार पदक जीतकर शुरुआत की वो भी चांदी से। उनके इस पदक ने वेटलिफ्टिंग को नया जीवन देने के साथ–साथ बेटियों को नई राह भी दिखाई है। उन्होंने 21 साल बाद देश को वेटलिफ्टिंग में पदक दिलाया। उनसे पहले 2000 सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था।

सिंधू जैसा हिंद में कोई नहीं

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विश्व चैंपियन पीवी सिंधू भले ही स्वर्ण पदक से चूक गईं हों लेकिन उनके कांस्य ने भी इतिहास रच दिया। वह लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की पहली बेटी है जबकि कुल दूसरी खिलाड़ी बन गईं। सेमीफाइनल में ताई से हारने के बाद 26 वर्षीय सिंधू ने तीसरे स्थान के लिए हुए मुकाबले में पूरी जान लगाकर टोक्यो खेलों में देश को दूसरा पदक दिलाया। 

लवलीना ने मुक्कों से लिखी नई कहानी 

ओलंपिक में भारतीय महिलाओं ने किया शक्ति प्रदर्शन, लगाई जीत की हैट्रिक

पहली ही बार ओलंपिक में खेलने वाली असम की 23 साल की लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) भारतीय रिंग की नई मलिका बन गईं। उन्होंने अपने मुक्कों से मुक्केबाजी में नई कहानी लिखी। वह दिग्गज मैरीकॉम के बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की दूसरी बिटिया हैं जबकि कुल तीसरी मुक्केबाज बनीं। मैरी भले ही दूसरा पदक नहीं जीत पाईं लेकिन उन्होंने अपने खेल से सभी का दिल जरूर जीत लिया। 

हॉकी में हार, विजय से कम नहीं

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रानी रामपाल की अगुवाई में महिला हॉकी ने इस खेल में नई जान फूंक दी। तीन मैच हारने के बाद बेटियां जिस तरह से लड़ी और पदक के मुकाबले तक पहुंची वह मिसाल बन गईं। भले ही वह ब्रिटेन से कांस्य पदक के मुकाबले में चूक गईं लेकिन उनकी यह हार किसी विजय से कम नहीं है। किसी ने महिला टीम के सेमीफाइनल तक पहुंचने की उम्मीद भी नहीं की थी। पर उन्होंने अपने हार न माने वाले जज्बे से सभी को अपना मुराद बना लिया।    

अदिति निकलीं अद्वितीय

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गोल्फर अदिति अशोक भी निकली अद्वितीय। लगातार दूसरे ओलंपिक में खेलने वाली 23 वर्षीय अदिति दो स्ट्रोक से पदक चूक गईं। लगातार तीन दिन तक टॉप दो में रहने वाली अदिति की किस्मत अंतिम दिन उनसे खफा हो गईं और उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने कहा कि मैंने अपना 100 प्रतिशत दिया, लेकिन ओलंपिक में पदक की तुलना में चौथे स्थान के मायने नहीं हैं। किसी भी अन्य टूर्नामेंट में यदि मैं इस स्थान पर रहती तो मुझे वास्तव में खुशी होती, लेकिन चौथे स्थान से खुश होना मुश्किल है।

फाइनल में पहुंच कमलप्रीत ने किया कमाल

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पहली बार ओलंपिक और अपनी दूसरी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेलने वाली में डिस्कस थ्रोअर कमलप्रीत ने भी फाइनल में पहुंचकर कमाल कर दिया। पंजाब की कमलप्रीत 63.70 मीटर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो लगाकर छठे स्थान पर रहीं पर उन्होंने भविष्य की उम्मीद जगा दी। वह कृष्णा पूनिया के नौ साल बाद ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली चक्का फेंक खिलाड़ी बनीं।