रिश्ते जन्म व धर्म के मोहताज नहीं, इस बात को साबित करते शबीना, चंद्रपाल व राजेश मौर्य

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रिश्तों की डोर जितनी कमजोर होती है, उतनी ही मजबूत भी होती है। रिश्ते न जन्म से बनते हैं और न ही धर्म से, रिश्ते बनते हैं तो प्रेम, विश्वास, सम्मान और भावनाओं से। इस बात को साबित किया शहर के ही शबीना, चंद्रपाल व राजेश मौर्य ने।

शबीना पिछले 26 सालों से चंद्रपाल और 15 सालों से राजेश मौर्य की कलाई पर राखी बांधती आ रही हैं। भाई – बहन के पवित्र त्योहार रक्षाबंधन को अब केवल एक ही दिन बाकी है, ऐसे में शबीना ने एक बार फिर अपने दोनों भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधने की पूरी तैयारी करली है।

रिश्ते जन्म व धर्म के मोहताज नहीं, इस बात को साबित करते शबीना, चंद्रपाल व राजेश मौर्य

वर्ष 1995 में श्यामगंज निवासी शबीना परवीन ने चंद्रपाल की कलाई पर पहली बार राखी बांधी थी। तभी से वे इस परंपरा को निभाती आ रही हैं। अपने रिश्ते की जानकारी देते हुए शबीना ने बताया कि जब वह बीटीसी कोचिंग लेने फरीदपुर जाया करती थीं, तब चंद्रपाल उनके साथ जाते थे तथा एक छोटी बहन की तरह वे उनका ख्याल भी रखते थे।

शबीना ने बताया कि जब रक्षाबंधन का दिन करीब था, तब बस में शबीना ने चंद्रपाल को राखी बांधने की इच्छा जाहिर की। चंद्रपाल ने भी तुरंत हां कह दी और तभी से भाई – बहन के इस अटूट व विश्वशनीय रिश्ते की शुरुआत हुई। शबीना का कहना है कि उन्हें शुरू से ही चंद्रपाल की आखों में उनके लिए छोटी बहन का प्यार दिखता है।

रिश्ते जन्म व धर्म के मोहताज नहीं, इस बात को साबित करते शबीना, चंद्रपाल व राजेश मौर्य

वहीं राजेश मौर्य के साथ के रिश्ते के बारे में शबीना ने बताया कि वर्ष 2000 में जब उनकी ज्वाइनिंग कांधपुर के प्राथमिक विश्वविद्यालय में हुई, तभी वे राजेश से मिली थीं। एक बार बात करते – करते राजेश ने शबीना से अपनी बीमारी का जिक्र किया, तब शबीना ने अपने पति से उनका इलाज कराया। तभी से राजेश उन्हें अपनी बहन मानकर शबीना से प्रत्येक वर्ष राखी बंधवाते आ रहे हैं।

शबीना ने बताया कि अब उन बच्चे इस रिश्ते को आगे बड़ा रहे है। शबीना ने कहा कि उनकी बेटी चंद्रपाल व राजेश के बेटों को राखी बांधती है और चंद्रपाल व राजेश की बेटियां उनके बेटे को राखी बंधकर हिंदू – मुस्लिम एकता की मिशाल कायम कर रहे हैं। शबीना ने बताया कि वर्ष 2010 में जब हिंदू – मुस्लिम लड़ाई के चलते शहर में 22 दिन का कर्फ्यू लगा था, और 2013 में जब दंगे हुए थे

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और करीब आठ दिन के लिए शहर को बंद कर दिया गया था। तब राखी का त्योहार नजदीक था और शबीना को फिक्र सता रही थी कि इस बार वह कैसे अपने भाइयों को राखी बंधेगी। तब शबीना ने दोनों के पास फोन के पूछा कि राखी बांधने कहां आना है। दोनों ने शबीना को घर से बाहर निकलने से मना कर दिया था और उनके घर वे राखी बंधवाने गए थे।