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बचपन में नहीं हुआ करते थे पेट भरने के लिए भी पैसे आज है करोड़पति, जानें पूरी कहानी

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आज आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने वाले हैं जिसने बचपन से संघर्ष किया और जिसके बारे में पढ़ कर आपको प्रेरणा और साथ ही बुरे वक्त में हौसले मिलेगा। ना पूछ की मेरी मंजिल कहा है, अभी तो सफर का इरादा किया है। ना हारूंगा हौसला चाहे कुछ भी हो जाए, ये मैने किसी और से नही खुद से वादा किया है। यह इनके उपर लाइन एकदम सटीक और सही बैठती है।

इंसान का समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। इंसान अपनी मेहनत के दम पर मुकाम पा सकता है। जिस व्यक्ति की हम बात कर रहे हैं उसके नाम है भंवरलाल आर्य। भंवरलाल का जन्म 1 जून 1969 में राजस्थान के कल्याणपुर तहसील के ढाणी में हुआ था। भंवरलाल का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था।

बचपन में नहीं हुआ करते थे पेट भरने के लिए भी पैसे आज है करोड़पति, जानें पूरी कहानी

इंसान मेहनत करे तो वह दुनिया में सबको पीछे छोड़ कर आगे बढ़ सकता है। वैसे तो आज उनके पास सब कुछ है और वो आराम से अपनी जिंदगी गुज़ार रहे हैं लेकिन उनके पास हमेशा से ये आराम नहीं था। भंवरलाल ने अपनी जिंदगी में वो दिन भी देखे हैं जब उन्हें भूख लगती थी लेकिन अपना पेट भरने के लिए उनकी जेब में पैसे नहीं होते थे। बचपन में भंवरलाल को अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ी थी। लेकिन उन हालातों में भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी जिसके कारण आज लोग उनसे प्रेरित होते हैं।

बचपन में नहीं हुआ करते थे पेट भरने के लिए भी पैसे आज है करोड़पति, जानें पूरी कहानी

बचपन में बहुत संघर्ष किया उनके पास बचपन में खाने के लिए पैसे भी नहीं हुआ करते थे लेकिन समय रहते हैं उन्होंने मेहनत करके आज वह मुकाम पा लिया है जिसकी उन्होंने शायद कभी कल्पना भी नहीं की होगी। भंवरलाल के पिता राणाराम मुंडण और माँ राजोदेवी नहीं चाहते थे की उनके बच्चे को गरीबी का सामना करना पड़े। इसलिए भंवरलाल आर्य के माता-पिता ने उन्हें उनकी नानी ने घर भेज दिया।

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बचपन से ही उनका परिवार बेहद गरीब था। लेकिन आज उनके पास वह सब कुछ है जिसकी कल्पना उन्होंने बचपन में की थी। अपनी नानी के यहाँ 12 साल की उम्र तक रहे और उन्होंने 5वी कक्षा तक पढ़ाई करी। जब उन्हें पता चला की उनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब है तो उन्होंने उसी वक्त छोटी उम्र में पैसा कमाने का निश्चय किया और राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में काम ढूंढ़ने के लिए निकल पड़े। लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला। एक समय था जब भंवरलाल खाना खाने के लिए भी तरसते थे लेकिन आज उनके पास सब कुछ है।

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