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पति का इलाज़ कराने के लिए साड़ी और नंगे पैर दौड़कर ही जीत गई मैराथन, सभी के लिए बनी मिसाल

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एक पत्नी के लिए उसका पति भगवान के बराबर होता है। कभी भी मैराथॉन दौड़ना आसान नहीं होता। हम और हमारे जैसे कई लोग रोज़ उठकर 20 मिनट चल नहीं पाते, मैराथॉन तो अलग ही मामला है। अगर हम आपसे ये कहें कि कोई महिला 68 की उम्र में साड़ी में मैराथॉन दौड़ गई और जीत भी गई? लता, महाराष्ट्र के बारामती ज़िले के एक गांव में रहती हैं। लेकिन उनकी पहचान पूरी दुनिया में हो गयी है।

पति – पत्नी का रिश्ता ईश्वर बनाकर भेजता है। हमारे देश में न जाने कितनी महिलाएं हैं जो अपने पति की सलामती के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती हैं। उन्होंने 68 साल की उम्र में जिसमें आमतौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, उस उम्र में अपने पति को बीमारी से बाहर निकालने के लिए मैराथन की दौड़ में हिस्सा लिया और प्रथम पुरस्कार जीतकर पूरी दुनिया के सामने मिसाल प्रस्तुत की।

पति का इलाज़ कराने के लिए साड़ी और नंगे पैर दौड़कर ही जीत गई मैराथन, सभी के लिए बनी मिसाल

गरीबी एवं ख़राब स्थिति इंसान को कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है। करवा चौथ के व्रत से लेकर वट सावित्री में बरगद की पूजा करने तक, भारतीय महिलाएं पति की हर मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करती हैं। सिर्फ युवा वर्ग ही नहीं बल्कि सभी उम्र के लोगों के लिए लता भगवान करे प्रेरणा बन गयी हैं। लता के पति काफी बीमार हो गए थे। उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे। पैसे पाने के लिए ही लता ने मैराथन में हिस्सा लिया था।

पति का इलाज़ कराने के लिए साड़ी और नंगे पैर दौड़कर ही जीत गई मैराथन, सभी के लिए बनी मिसाल

लता खरे के पति की तबीयत अचानक ख़राब हो गई थी। भारतीय महिलाएं पति की हर मुसीबत से बचाने की प्रार्थना करती हैं। यही नहीं बड़ी से बड़ी बाधाओं को नगण्य मानकर औरतें पति की ख़ुशी के लिए ही प्रयासरत रहती हैं। उनकी उम्र 68 साल है और वो मैराथन रनर के नाम से जानी जाती हैं। साल 2014 तक कोई उनका नाम भी नहीं जानता था, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने मैराथन रेस में हिस्सा लिया, जीत हासिल की और हर कोई उन्हें जानने लगा।

पति का इलाज़ कराने के लिए साड़ी और नंगे पैर दौड़कर ही जीत गई मैराथन, सभी के लिए बनी मिसाल

उनकी इस हिम्मत के आगे हर कोई सिर झुकाता है। जीवन भर खेत में मज़दूरी कर अपना घर चलाने वाली लता के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। उनकी हिम्मत के आगे मुसीबत ज़्यादा देर नहीं टिक सकी।

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