हरियाणा में हो रहे किसानों आंदोलनों के बारे में एक बहुत ही सहज सवाल जहन में है कि तीन कृषि कानूनों में बदलाव का अधिकार जब केंद्र सरकार के पास है तो फिर किसान आंदोलनों की धुरी हरियाणा क्यों बना हुआ है ? आखिर क्यों बार – बार हरियाणा के मंत्रियों व नेताओं का घेराव क्या जा रहा है ? सरकारी कामकाज में दखलंदाजी क्यों की जा रही है व क्यों प्रशासनिक सिस्टम को चलने नहीं दिया जा रहा ? इन सभी सवालों के जवाब किसान व कांग्रेस नेताओं के पास अलग – अलग हैं।
वहीं भाजपा व जननायक जनता पार्टी की सरकार के मंत्रियों द्वारा आंदोलनकारियों के मंसूबों पर अलग ही सवाल उठाए जा रहे हैं। हरियाणा को छोटा भाई कहकर दबाने वाले बड़े भाई पंजाब के भी मंसूबे इस आंदोलन के प्रति ठीक नहीं हैं। पिछले दिनों किसान मुद्दे को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच जब जमकर बहस हुई तो ऐसी बहुत सी बातें सामने आईं, जिनके आधार पर इस आंदोलन को यदि कांग्रेस जनित का नाम भी दे दिया जाए तो कोई हर्ज नहीं है।
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह एवं हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा आंदोलनकारियों को भड़काने, उनका राजनीतिक दोहन करने और किसानों को केंद्र के साथ बिना शर्त वार्ता के लिए नहीं जाने देने के सीधे आरोप लगाए गए। उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के भी इसी प्रकार के आरोप हैं। यही नहीं बल्कि आंदोलनकारियों पर करीब 1,200 करोड़ रुपये का चंदा तक इकट्ठा करने के भी आरोप लगाए गए हैं।
यहां तक कि हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल तो भाकियू नेता गुरनाम सिंह चढूनी को भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पेड वर्कर भी कह चुके हैं। भाकियू नेता राकेश टिकैत की स्थिति भी बिल्कुल ऐसी हो गई है, जैसी जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हरियाणा को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले यशपाल मलिक की हो गई थी। यशपाल मलिक जोकि उत्तर प्रदेश से यहां आकर आंदोलन का झंडा बुलंद करते थे।
योगेंद्र यादव व कामरेड इंद्रजीत की छवि आंदोलन में कम्युनिस्ट विचारधारा को हवा देने वाली है तो वहीं पंजाब के किसान नेता राजेवाल का गन्ने का रेट बढ़ने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को लड्डू खिलाते हुए फोटो वायरल होता है, तब खुद ब खुद कहानी समझ में आने लगती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा कई बार कहा जा चुका है कि किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की जिद को छोड़कर केंद्र सरकार से बात कर लें, लेकिन किसान हैं कि वे अपनी जिद से पीछे नहीं हट रहे।
केंद्र सरकार के मंत्री का कहना है कि प्रत्येक कानून में बदलाव संभव है, किंतु किसान नेता पहले यह तो समझाएं कि आखिर कानूनों में कमियां क्या हैं। न तो मंडियां बंद हो रही हैं और न ही एमएसपी को खत्म किया जा रहा है। साथ ही किसानों को कहीं पर भी अपनी फसलों को बेचने की आजादी भी दी जा रही है, इतना सब होने के बावजूद भी आखिर किस बात का दर है ?
उपर्युक्त सवालों का जवाब देने की बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री मनोहर लाल का इस्तीफा मांग लिया। भरी प्रेस कांफ्रेंस में जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल से कैप्टन की इस मांग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पंजाबी में जवाब देते हुए कहा कि मैं क्यों इस्तीफा दूं, कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देना चाहिए, जिन्होंने इस पूरे आंदोलन को हवा दे रखी है। इस दौरान हुआ वाद – विवाद कई दिनों तक मीडिया की सुर्खियां बना रहा।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आठ सवालों के जरिये कैप्टन अमरिंदर सिंह को कहा कि हम किसानों की 10 फसलें एमएसपी पर खरीद रहे हैं, नई मंडियां बना रहे हैं, धान की खेती छोड़ने वालों को सात हजार रुपये प्रति एकड़ दे रहे हैं, 72 घंटे से अधिक फसल की पेमेंट लेट होने पर किसानों को 12 फीसद ब्याज दे रहे हैं, धान की सीधी बिजाई करने वाले किसानों को पांच हजार रुपये प्रति एकड़ दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि गन्ने का रेट भी हमारा सबसे अधिक है तथा हम किसानों को दस पैसे यूनिट बिजली भी दे रहे हैं। सवाल करते हुए सीएम ने कहा कि पंजाब अपने किसानों को क्या दे रहा है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा किए गए इन सवालों के कोई ठेस जवाब पंजाब सरकार नहीं दे पाई, लेकिन इसके बदले में मुजफ्फरनगर पंचायत के बाद करनाल में महापंचायत अवश्य मिली। करनाल के तत्कालीन एसडीएम आयुष सिन्हा का आंदोलनकारियों का सिर फोड़ देने वाला वीडियो नि:संदेह प्रशासनिक मशीनरी के कामकाज के एथिक्स के खिलाफ है और सरकार ने तबादले के रूप में उन्हें उसकी सजा भी दे दी है, लेकिन केंद्र से बात किए बिना हरियाणा को लंबे समय तक आंदोलन का स्थान बनाए रखने का औचित्य अभी भी समझ से परे ही है।