हजारों पेड़-पौधे लगाकर, इस प्रिंसिपल ने बंजर जमीन को बना दिया ‘फ़ूड फॉरेस्ट’

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     हजारों पेड़-पौधे लगाकर, इस प्रिंसिपल ने बंजर जमीन को बना दिया ‘फ़ूड फॉरेस्ट’

    पर्यावरण आज एक गंभीर मुद्दा बन गया है। हर कोई इसकी चर्चा कर रहा है। लेकिन कम ही लोग हैं जो इसे बचाने का काम कर रहे हैं। इन्हीं में शुमार है इनकी गिनती। पुडुचेरी के प्रमुख कॉलेजों में से एक टैगोर गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज ने हरे भरे अभ्यारण्य को बनाकर एक उदाहरण पेश किया है। यह कारनामा परिसर की 13 एकड़ जमीन पर हुआ है।

    दोस्तों या करीबियों के साथ समय बिताना हो तो अक्सर हम कोई पार्क या हरी-भरी जगह ही तलाशते हैं। यह हरियाली कई जगहों पर समाप्त हो रही है। कॉलेज की स्थापना 1961 में लासपेट में हुई थी और यह पांडिचेरी विश्वविद्यालय से संबद्ध है, जोकि भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। कॉलेज में कला, कॉमर्स और साइंस के तमाम विषयों में पाठ्यक्रम प्रदान करता है।

    हजारों पेड़-पौधे लगाकर, इस प्रिंसिपल ने बंजर जमीन को बना दिया ‘फ़ूड फॉरेस्ट’

    हरियाली से भरी जगह पर सुकून मिलता है। हमारे आसपास ज्यादातर घने छायादार पेड़ बहुत पुराने हैं। टैगोर गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के प्राचार्य शशि कांता दास ने शिक्षा के लिए पर्यावरण के महत्व पर जोर दिया और कहा कि परिसर में एक वेजिटेबल गार्डन भी बनाएया गया है। दास ने कहा, ‘पोस्टर सरकारी कॉलेज की परिधि की दीवार पर चिपकाए गए थे। कोई पेड़ नहीं थे। हमने फिर इसे एक हरे रंग के परिसर में बदलने का फैसला किया। सबसे पहले, हमने परिसर में पोस्टर हटाया और दीवारों की सफाई की।

    हजारों पेड़-पौधे लगाकर, इस प्रिंसिपल ने बंजर जमीन को बना दिया ‘फ़ूड फॉरेस्ट’

    शशिकांत कॉलेज के प्रिंसिपल हैं। 20 वर्षों से भी ज्यादा समय से शिक्षा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे शशिकांत की एक और पहचान है और वह है ‘ग्रीन मैन’ के रूप में। उन्होंने कहा, ‘शिक्षा के लिए पर्यावरण महत्वपूर्ण है इसलिए हमने पेड़ लगाना शुरू किया। विशेष रूप से हमने ताड़, नारियल, सपोडिला, जैक और केला जैसे कई तरह के पेड़ लगाए हैं। कुल मिलाकर हमने 3,000 पेड़ आठ एकड़ में लगाए हैं।’ दास ने कहा कि छात्रों को पौष्टिक भोजन भी मिलता है क्योंकि कॉलेज कैंटीन बगीचे से ताजी सब्जियों का उपयोग करता है।

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    बचपन से ही हरियाली के बीच पले-बढ़े शशिकांत को बंजर और सूखी जगहें रास नहीं आती हैं। शशि कांता दास ने कहा, ‘अब हमारे पास एक सब्जी का बगीचा भी है। हम सब्जी के बगीचे से कैंटीन में फूड आइट्स लाते हैं।