IAS बनने के लिए HR की नौकरी छोड़ी, असफल होने के बाद डिप्रेशन में बन गई ‘कूड़ा बीनने वाली’

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     IAS बनने के लिए HR की नौकरी छोड़ी, असफल होने के बाद डिप्रेशन में बन गई ‘कूड़ा बीनने वाली’

    यह सुनने में आ जाता है कि वह इंसान पढ़ते-पढ़ते पागल हो गया है इसके पीछे का कारण होता है। भारत में सरकारी नौकरी को बहुत अधिक अहमियत दी जाती है। यूपीएससी की परीक्षा भारत में सर्वोच्च परीक्षा मानी जाती है। किसी चीज के प्रति बहुत ज़्यादा पागलपन भी हमें अवसाद की ओर धकेल देता है। अपने लक्ष्य के प्रति जुनून पैदा करना अच्छी बात है लेकिन हद से ज़्यादा नहीं, क्योंकि बहुत ज़्यादा पागलपन व्यक्ति को कहीं का नहीं छोड़ता है।

    सबके दिल में ख़्वाहिश होती है कि वह अच्छी से अच्छी नौकरी करें IAS, IPS जैसे पद को प्राप्त करे। सकी तैयारी के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है मेहनत और सब्र। जिस किसी विद्यार्थी में मेहनत और सब्र नहीं है वह यूपीएससी की परीक्षा पास करने में नाकाम हो जाता है।

    IAS बनने के लिए HR की नौकरी छोड़ी, असफल होने के बाद डिप्रेशन में बन गई ‘कूड़ा बीनने वाली’

    कुछ इसी तरह IAS बनने का सपना संजोइ थी हैदराबाद की रजनी टोपा। अपने बचपन से देखा होगा कि घर वाले हमेशा पढ़ाई के लिए बोलते रहते हैं लेकिन इसके बावजूद भी बच्चे खेल पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उन्होंने दो बार प्रयास भी किया। शायद कुछ कमी रह जाने के कारण वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाई और अपने इस असफलता से वह इस क़दर अवसाद में गई जहाँ से निकलना उनके लिए असंभव हो गया। आज उनकी स्थिति ऐसी है कि वह सड़क पर कचरा बिनते हुए नज़र आई हैं।

    IAS बनने के लिए HR की नौकरी छोड़ी, असफल होने के बाद डिप्रेशन में बन गई ‘कूड़ा बीनने वाली’

    कुछ बच्चे पढ़ाई में इतना खो जाते हैं कि पढ़ाई का जुनून उनके सर पर सवार हो जाता है। मूल रूप से हैदराबाद वारंगल की रहने वाली महिला रजनी टोपा का सपना था कि वह IAS अधिकारी बने। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने एक मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर मैनेजर की नौकरी तक छोड़ दी और यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी में जुट गई।

    IAS बनने के लिए HR की नौकरी छोड़ी, असफल होने के बाद डिप्रेशन में बन गई ‘कूड़ा बीनने वाली’

    पढ़ाई का अधिक जुनून होना भी सेहत के लिए हानिकारक होता है और इससे पागलपन भी हो सकता है। जब वह अपने दूसरे प्रयास में भी सफल नहीं हो पाई तब वह धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने लगी। उनकी स्थिति इतनी बिगड़ गई कि उन्होंने 8 महीने पहले अपना घर तक छोड़ दिया और सड़क पर आ गई। अपने शहर हैदराबाद से हजारों किलोमीटर दूर यूपी के एक शहर गोरखपुर में वह सड़क पर कचरा चुनती हुए नज़र आई।