हरियाणा में धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल की समय से बुवाई और लागत को कम करने के लिये जलायी जाने वाली पराली अब पर्यावरण प्रदूषण का कारण न होकर किसानों की आय का साधन बनेगी। जनपद में पराली जलाने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। धान का पुआल व फसली अवशेष (पराली) को जलाने से आर्थिक हानि के साथ-साथ मिट्टी की उत्पादकता क्षमता व उर्वरता पर काफी प्रभाव पड़ता है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पराली में नाइट्रोजन, फास्फोटस और पोटाश की मात्रा होती है, जिसे जलाने के स्थान पर यदि खेत में उपयोग किया जाया तो मिट्टी को एनपीके की उचित मात्रा मिल जायेगी तथा मिट्टी के तापमान, पीएच, नमी आदि भी प्रभावित नही होगी और खेत की मिट्टी भी उपजाऊ होगी।
सरकार इस बार किसानों से पराली भी खरीदेगी । पराली की खरीद भूना में लगे बिजली उत्पादन संयंत्र के लिए होगी। जो इस बार फरवरी तक शुरू हो जाएगा। गत वर्ष इस संयंत्र के लिए 4 लाख क्विंटल पराली की खरीद हुई थी। जो इस बार खरीद की मात्र बढ़ गई। इससे किसानों को खूब लाभ मिलेगा। इस संयत्र ने गत वर्ष 135 रुपये क्विंटल के हिसाब से पराली खरीदी गई थी। इस बार भी नए रेट पर पराली की खरीद होगी। जिसके लिए प्रशासन से अनुबंध हो गया।
दरअसल, भूना के पास 10 मेगावाट बिजली उत्पादन का संयंत्र लगा है। जो पराली के अवशेष से चलेगा। संयंत्र का कार्य अंतिम चरण है। जो आगामी फरवरी तक पूरा होने का अनुमान है। इसके बाद आगामी दो-तीन वर्षों में पराली की खरीद बढ़ने वाली है। जिसका बड़े स्तर पर किसानों को लाभ मिलेगा।
एक स्ट्रा बेलर 500 एकड़ जमीन की बनाते है गांठें
जिले में 191 स्ट्रा बेलर हैं। इस वर्ष 40 किसानों को नई स्ट्रा बेलर खरीदने के लिए अनुदान दिया जाएगा। ऐसे में 221 स्ट्रा बेलर हो जाएगी। जबकि जिले के 129 ही ऐसे गांव हैं जिनमें 80 फीसद से अधिक में धान की खेती होती है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि एक स्ट्रा बेलर मशीन एक सीजन में 500 एकड़ से पराली की गांठेंं बना देती है। सरकार भी प्रति एकड़ गांठें बनाने पर किसानों को 1 हजार रुपये अनुदान देती है। ऐसे में किसान को 2 हजार रुपये ही इसका खर्च आता है।
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