10 माह बीतने के उपरांत भी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर जा रही है। मगर जिस जोश के साथ किसानों ने केंद्र सरकार के प्रति हुंकार भरी थी अब वह कहीं न कहीं ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है।
इसकी खास वजह की बात करे तो स्वयं किसान संगठनों में पनपने वाला आंतरिक कलह है जिसके चलते
हरियाणा के किसान संगठनों की संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से उपेक्षा किए जाने से भी आंदोलन के लिए प्रतिकूल माहौल पैदा हुआ है।
गौरतलब, आंदोलन में शुरू से सक्रिय रहने वाले हरियाणा के किसान संगठनों के प्रति संयुक्त किसान मोर्चा का रवैया देखा गया वो न सिर्फ उदासीनता का कारण बना बल्कि उसी ने आंदोलन में दरार पैदा की। उपेक्षा की वजह से ही आंदोलन स्थल से हरियाणा के कुछ संगठन वापस लौट गए और कुछ को मोर्चा ने ही किनारे कर दिया। तब से ही आंदोलन कमजोर भी पड़ा है और संयुक्त किसान मोर्चा के शीर्ष नेतृत्व पर भी हरियाणा के किसान संगठन तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं।
यूं तो हरियाणा के संगठन पहले ही भारत बंद को न मान दूसरा कोई प्रभावी फैसला लिए जाने के पक्ष में थे, ताकि सरकार पर दबाव बढ़े और किसानों की जो मांग है, वह पूरी की जा सके। इन संगठनों के द्वारा बंद के प्रभावी न रहने की संभावना पहले ही जताई जा रही थी, क्योंकि आंदोलन में दो बार पहले भी बंद किए जा चुके हैं। ऐसे में बार-बार एक ही तरह के फैसले प्रभावी कैसे हो सकते हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा की जो नौ सदस्यीय कमेटी है उसमें शामिल राकेश टिकैत, गुरनाम चढ़नी और योगेंद्र यादव तो सबसे ज्यादा निशाने पर हैं। इन तीनों पर राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए आंदोलन का इस्तेमाल करने और इसकी आड़ में खुद को प्राेजेक्ट करने के आरोप रह-रहकर लगते रहते हैं। अब जिस तरह से भारत बंद का दो राज्यों में भी पूरा असर नहीं हुआ, उससे भी हरियाणा के संगठनों के निशाने पर संयुक्त मोर्चा की शीर्ष कमेटी और ये तीनों नेता ही है।