घर हर किसी के लिए काफी अहम होता है। यह सभी जानते हैं कि घर से बड़ा पवित्र स्थल और कोई नहीं होता। किसी के लिए तो घर सपना ही है। घर को सुंदर बनाने का प्रयास हर कोई करता है। उसमें अच्छी – अच्छी पेंटिंग करता है लेकिन देश में एक ऐसा गांव भी हैं जहां घरों में लोग काला रंग की करवाते हैं। घरों को रंगने के लिए केवल काले रंग का प्रयोग कोई भी नहीं करता है।
आपसे कोई कहे कि आपके इसी रंग से अपना घर रंगना होगा तो यकीनन आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा। इतना ही नहीं ऑयल पेंट, इमल्शन पेंट या चूना कलर किसी के भी कैटलॉग में काला रंग नहीं होता है। इस रंग का डिमांड बिल्कुल ना के बराबर है।
तमाम तरह के रंग हैं जिनसे घर को रंगा जा सकता है। देश के हर कोने – कोने में अजूबे हैं। कई बातों के कारण हैं लेकिन कोई उन्हें कोई जानना नहीं चाहता है। ऐसे छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में आदिवासी बाहुल्य गांव और शहर में काले रंग से रंगे हुए मकान आसानी से नजर आते हैं। आदिवासी समज के लोग आज भी अपने घरों की फर्श और दीवारों को काले रंग से रंगते हैं। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं।
यहां आप चाहकर भी अपनी इच्छा से घर नहीं रंग सकते। इस गांव में हर घर को काले ही रंग से रंगना पड़ता है। जितनी मान्यताएं उतनी ही कहानियां। इस गांव का हाल भी ऐसा ही है। दिवाली से पहले सभी लोग अपने घरों के रंग-रोगन का काम करवाते हैं। जशपुर जिले के आदिवासी समाज के लोग परंपरा के अनुरूप काले रंग का ही चयन कर घरों को रंग रहे हैं। घरों की दीवारों को काली मिट्टी से रंगते हैं। पैरावट जलाकर काला रंग तैयार करते हैं, कुछ टायर जलाकर काला रंग बनाते हैं।
काले रंग का प्रयोग कोई भी नहीं करता है। लेकिन यहां पहले पहले काली मिट्टी आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन काली मिट्टी नहीं मिलने की स्थिति में ऐसा किया जा रहा है।