दिवाली पर सभी लोग अपने घरों में मां लक्ष्मी की पूजा करते है साथ ही मां लक्ष्मी को भोग लगाते है।हिंदू में ज्यादातर लोग माता के भोग में खिल बताशे रखते है।साथ ही इसको महापर्व के रूप में मानते है।
दिवाली साल का सबसे बड़ा त्योहार होता है।इससे हर बार कार्तिक माह की अमावस्या पर मनाया जाता है। इस साल हम 4 नवंबर,वीरवार को दिवाली का पवन पर्व मना रहे है।दिवाली की पूजा पाठ में बहुत सी परंपरा होती है।इसी के साथ दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा होती और साथ ही खिल बताशे का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने के पीछे व्यवहारिक, दार्शनिक और ज्योतिषीय कारण है।खिल चावल का ही एक मूल रूप होता है। इसे उत्तर भारत में ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है।
दिवाली पूजा में आप सभी मां लक्ष्मी को खेल बताशे का भोग तो लगा देते हो लेकिन क्या आप ने कभी इसकी वजह जानने की कोशिश की है? तो आज हम आप सभी इसकी वजह बताएंगे दरअसल ये प्रसाद का व्यवहारिक, दार्शनिक, और ज्योतिषीय महत्व होता है। जैसा कि आप सभी जानते है की दिवाली को धन और वैभव का रूप माना जाता है।
इस दिन हर कोई इन दोनों चीजों को प्राप्त करने के लिए ही सारी पूजा पाठ करता है। असल में धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह होता है। और शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य धान होता है। ऐसे में शुक्र गृह को प्रसन्न करने के उद्देश्य से ही हम देवी लक्ष्मी को खील-बताशे का भोग लगाते हैं।
दिवाली के पहले ही धान की फसल तैयार कर ली जाती है। इस तरह मां लक्ष्मी को दिवाली पर इसे चढ़ाने में आसानी होती है। एक और बात का विशेष रूप से ध्यान रखे कि खील बताशे जब भी घर में ले तो पूजा के बाद ही उन्हें खाए। इसके पहले इनका सेवन न करें। पूजा हो जाने के बाद पहले घर के सभी सदस्य इसे खाएं और फिर आस पड़ोस में प्रसादी के रूप में भी इसे बांटें। ऐसा करने से आपके घर धन की आवक बढ़ने लगेगी।
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